सोमवार, 31 मार्च 2014

हिंदी विश्वविद्यालय में दो-दिवसीय अनुवाद कार्यशाला का समापन

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय का दूर शिक्षा निदेशालय और साने गुरूजी राष्‍ट्रीय स्‍मारक ट्रस्‍ट, मुंबई के संयुक्‍त तत्‍वावधान में विश्‍वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय (दि. 28 एवं 29 मार्च) को आयोजित अनुवाद कार्यशाला का समापन हबीब तनवीर सभागार में शनिवार को हुआ। समापन समारोह में दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. मनोज कुमार, आंतरभारती अनुवाद सुविधा केंद्र की अध्‍यक्ष प्रो. पुष्‍पा भावे, इंडिया इंटरनेशनल मल्‍टीव्‍हर्सिटी, पुणे के कुलपति प्रो. प्रमोद तलगेरी तथा प्रख्‍यात अनुवादक प्रो. नीरजा मंचस्‍थ थे।
समापन वक्‍तव्‍य में प्रो. पुष्‍पा भावे ने कहा, अनुवाद करते समय मूल लेखक और पाठ के बीच अनुवादक का रिश्‍ता होना चाहिए। जब तक अनुवादक को किसी भी दो भाषाओं का ज्ञान नहीं होता तब तक प्रमाणिक अनुवाद नहीं हो सकता। उन्‍होंने सांस्‍कृतिक शब्‍दों के अनुवाद में आने समस्‍याओं को भी समझाया। प्रो. मनोज कुमार ने अनुवाद करते समय अपने विवेक का उपयोग करने की सलाह दी और कहा कि ज्ञान के विस्‍तार के लिए अनुवाद के माध्‍यम से प्रयास होने चाहिए।

समापन समारोह में कार्यशाला में सहभागी प्रतिभागियों को अतिथियों के द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किये गये। समारोह का संचालन सहायक प्रोफेसर संदीप सपकाले ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन सहायक प्रोफेसर अमरेंद्र कुमार शर्मा ने प्रस्‍तुत किया। कार्यशाला के संयोजक सहायक प्रोफेसर शैलेश मरजी कदम ने सभी अतिथि तथा प्रतिभागियों को कार्यशाला में सहभागिता करने के लिए धन्‍यवाद दिया। समारोह में विश्‍वविद्यालय के अध्‍यापक, शोधार्थी, विभिन्‍न स्‍थानों से आए प्रतिभागी तथा विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे। 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

हिंदी विश्वविद्यालय में चीन के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत




महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में चीन के शनयाड विश्‍वविद्यालय से आये प्रतिनिधि मंडल का स्‍वागत कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र की अध्‍यक्षता में गुरूवार को आयोजित एक समारोह में किया गया। इस अवसर पर भाषा विद्यापीठ के कार्यवाहक अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज, विदेशी शिक्षण प्रकोष्‍ठ के प्रभारी प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्‍ल, भाषा विद्यापीठ के पूर्व अधिष्‍ठाता उपाशंकर उपाध्‍याय प्रमुखता से उपस्थित थे। चीन के शनयाड विश्‍वविद्यालय से तीन सदस्‍यों का एक प्रतिनिधि मंडल विश्‍वविद्यालय में आया जिसमें चीन के अंतरराष्‍ट्रीय शिक्षा महाविद्यालय के अध्‍यक्ष तथा अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग कार्यालय के उपाध्‍यक्ष फंग शूएकांग, अंतरराष्‍ट्रीय शिक्षा महाविद्यालय की उपनिर्देशक सुश्री चीन शूएली और कन्‍फयूसिएस संस्‍थान कार्यालय की अनुवादक सुश्री हू पो शामिल हैं।

     
भाषा विद्यापीठ के सभागार में आयोजित समारोह में प्रतिनिधि मंडल का स्‍वागत कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने शाल, पुष्‍पगुच्‍छ एवं सूत की माला प्रदान कर किया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. मिश्र ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि विश्‍वविद्यालय में अन्‍य पाठ्यक्रमों के साथ विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम भी चल रहे हैं। उन्‍होंने अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान आए अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि चीन का विकास पूरे विश्‍व को अपनी ओर आकर्षित करता है। भारत और चीन एशिया की दो महान सभ्‍येतावाले देश हैं। उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि शनयाड विश्‍वविद्यालय के साथ साझा समझौते के माध्‍यम से हम एशिया की सभ्‍यताओं को और निकट ला सकेंगे। चीन के प्रतिनिधि मंडल ने एक दूसरे के साथ सहयोग तथा अध्‍यापक एवं छात्रों के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रम चलाने की मंशा व्‍यक्‍त की। उन्‍होंने अपने विश्‍वविद्यालय की गतिविधियां एवं विस्‍तार की चर्चा भी की।

कार्यक्रम का संचालन सहायक प्रोफेसर रवि कुमार ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. विजय कौल ने प्रस्‍तुत किया। इस दौरान डॉ. अनिल कुमार पांडे, प्रो. जगदीप दांगी, सहायक प्रोफेसर अनिर्बान घोष, धनजी प्रसाद, आराधना सक्‍सेना, सन्‍मति जैन, बी. एस. मिरगे तथा छात्र प्रमुखता से उपस्थित थे।

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने ‘शोध पद्धति के मूल आधार’ विषय पर किया संबोधित



शोध के लिए समय के साथ संवेदनशील होने की आवश्‍यकता

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने ‘शोध पद्धति के मूल आधार’ विषय पर शोधार्थियों तथा प्राध्‍यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि सूचना क्रांति के आज के दौर में समाज विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। शोधार्थियों को चाहिए कि वे समय के साथ संवेदनशील हों। उन्‍होंने कहा कि शोध के लिए पुरातन उपकरणों को छोड़कर नए उपकरणों का उपयोग करना चाहिए ताकि अपने शोध को दूसरों के द्वारा किए गए शोध से अलग स्‍थापित किया जाए।
विश्‍वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में बुधवार को शोध प्रकोष्‍ठ के माध्‍यम से आयोजित विशेष व्‍याख्‍यान के दौरान मंच पर शोध प्रकोष्‍ठ एवं अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज, कुलानुशासक प्रो. सूरज पालीवाल, छात्र कल्‍याण अधिष्‍ठाता प्रो. अनिल कुमार राय मंचस्‍थ थे। कुलपति प्रो. मिश्र ने शोध के विभिन्‍न आयाम, बारीकियां, प्रचलित शोध पद्धतियां, शोध की वस्‍तुनिष्‍ठता एवं प्रामाणिकता आदि पर अपने गहन तथा चिंतनशील विचारों के माध्‍यम से उपस्थितों को शोध के विषय में अवगत कराया। उन्‍होंने कहा कि ज्ञान हर किसी के लिए उपलब्‍ध होना चाहिए और वह वस्‍तुनिष्‍ठ होना चाहिए। वैज्ञानिक अध्‍ययन के लिए यह जरूरी है तभी वैध, प्रामाणिक तथा विश्‍वसनीय ज्ञान प्राप्‍त हो सकता है। उन्‍होंने भौतिक विज्ञानी थॉमस कूहन के संदर्भ में कहा कि विज्ञान की प्रगति कुछ चरणों में होती है। जिसमें अनेक प्रकार के कोलाहल चलते रहते है। उसमें किसी एक को महत्‍वपूर्ण माना नहीं जा सकता। ज्ञान एक रचना है और एक आकर्षण भी। शोध के संदर्भ में उन्‍होंने कहा कि शोधकर्ता ही स्‍वयं शोध का उपकरण है। शोध में नयापन लाने के लिए उस पद्धति या जीवन पद्धति को अपनाना होता है। जैसे बौद्ध और वेदान्‍त चिंतन में शोध करना हो तो उसकी जीवन पद्धति अपनानी पड़ती है। उस पद्धति में स्‍वयं को डूबोना पड़ता है ताकि नए शोध के माध्‍यम से आपकी पात्रता भी निर्धारित हो सकें। उन्‍होंने कहा कि शोध करते समय यह शर्त अपनानी चाहिए कि आपका ज्ञान किसी और का न हो न हीं वह ज्ञान नकल या दौहराव का हो। आपका ज्ञान सार्वजनिक क्षेत्र में हो ताकि लोग उसका उपयोग कर सकें। शोध में नयापन हो पुनरावृत्ति नहीं। शोध की ललक और जिज्ञासा ही शोधकर्ता को गुणात्‍मक शोध की दिशा में ले जाती है। उन्‍होंने मात्रात्‍मक एवं गुणात्‍मक शोध के बारे में भी शोधार्थियों को बताया। इस दौरान कुलपति प्रो. मिश्र ने छात्रों की जिज्ञासाओं और प्रश्‍नों का यतोचित समाधान भी प्रस्‍तुत किया। कार्यक्रम का प्रास्‍ताविक एवं संचालन प्रो. देवराज ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. अनिल कुमार राय ने प्रस्‍तुत किया। व्‍याख्‍यान के दौरान विविध विभागों के अध्‍यापक, शोधार्थी एवं छात्र बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

सोमवार, 10 मार्च 2014



अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर हिंदी विवि में दो दिवसीय फिल्‍म महोत्‍सव सम्‍पन्‍न

महात्‍मा गांधी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के स्‍त्री अध्‍ययन विभाग द्वारा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दो दिवसीय फिल्‍म समारोह के उदघाटन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने कहा कि ज्ञान का रिश्‍ता सीधे समाज से जोड़ने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि हमें केवल स्‍त्री - पुरूष समानता ही नहीं बल्कि उसके आगे भी सोचना चाहिए। समारोह का उदघाटन 08 मार्च को हबीब तनवीर सभागार में हुआ। इस अवसर पर स्‍त्री अध्‍ययन विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. शंभू गुप्‍त, प्रो. वासंती रामन, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के प्रो. प्रवीण कुमार, अमरावती विश्‍वविद्यालय की डॉ. निशा शेंडे, विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुप्रिया पाठक मंचासीन थे। फिल्‍म महोत्‍सव का विषय था 'महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और सिनेमाई रुख़'। कार्यक्रम की शुरूआत दुनिया की उन महिलाओं के लिए कैंडिल जलाकर किया गया, जो कभी न कभी किसी तरह की हिंसा का शिकार हुईं, जिन्‍होंने संघर्ष किया जो मारी गईं, जो संघर्ष कर रही हैं। 

     प्रारंभ में स्‍त्री अध्‍ययन तथा अन्‍य विभागों की छात्राओं और छात्रों ने ''तू जिंदा है तो, जिंदगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्‍वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर'' जिंदगी, जीत और संघर्ष का आहवान करते इस गीत को प्रस्‍तुत किया।      स्‍त्री अध्‍ययन विभाग द्वारा शुरू किए गए ब्‍लॉग का अनावरण प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने किया। इस ब्‍लॉग का उद्देश्‍य विभाग की गतिविधियों को न केवल दुनिया के समक्ष रखना है बल्कि स्‍त्री-अध्‍ययन जैसे अकादमिक विषय के महत्‍व, उसकी ज़रूरत के साथ, स्‍त्री अध्‍ययन के विभिन्‍न आयामों को रचनात्‍मकता के साथ ब्‍लॉग जैसे आधुनिक माध्‍यम द्वारा दुनिया से जुड़ना भी है। कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने स्‍त्री अध्‍ययन विभाग को एक जिवंत विभाग बनाते हुए 8 मार्च के विभिन्‍न आयामों पर अपने विचार रखे। उन्‍होंने कहा कि स्त्रियां पुरूषों से समानता ही क्‍यों? उससे आगे की बात क्‍यों न करें? उन्‍होंने बच्चियों के कुपोषण और भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोग आज भी बेटे और बेटियों के खानपान में भेदभाव करते हैं। फिल्‍म महोत्‍सव की प्रासंगिकता और महत्‍व के बारे में उन्‍होंने कहा कि जीवन को उजागर करने में सिनेमा का बड़ा योगदान है।
     मुख्‍य अतिथि वक्‍ता प्रवीण कुमार, सहायक प्रोफेसर, दिल्‍ली ने कुछ फिल्‍मों का विशेष रूप से उल्‍लेख किया। हिंदी फिल्‍में- 'मदर इंडिया','मिर्च मसाला','वाटर'जैसी फिल्‍मों में स्‍त्री पात्रों और उनके संघर्षों के बारे में भी बताया। अमरावती वि.वि. की डॉ. निशा शेंडे ने महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा के विभिन्‍न स्‍वरूपों पर चर्चा करते हुए कहा कि महिला आंदोलन की सबसे ज्‍़यादा ज़रूरत जहां है वहां है ही नहीं। उन्‍होंने महिला दिवस के आंदोलन को श्रमिक वर्ग तक पहुंचाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। स्‍वागत भाषण प्रो. शंभु गुप्‍त ने उपस्थितों का स्‍वागत करते हुए 8 मार्च की प्रासंगिकता, स्‍त्री के प्रति सिनेमाई रूख़ को स्‍त्री अध्‍ययन जैसे विषय की चर्चा की। नाट्यकला एवं फिल्‍म अध्‍ययन के विभागाध्‍यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा ने स्‍त्री के प्रति हिंसा और सिनेमाई रूख़ पर मूक से लेकर सवाक़ फिल्‍मों का जिक्र किया। उन्‍होंने '‍हरिश्‍चंद्र', 'जिंदगी','देवदास','औरत','अछूत कन्‍या','मदर इंडिया','बंदिनी','अंकूर','मिर्च मसाला','गुलाब गैंग' इत्‍यादि फिल्‍मों की चर्चा की। प्रास्‍ताविक में स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की प्रोफेसर वसंती रामन ने कहा कि पूरे विश्‍व में महिलाओं का संघर्ष किसी एक आयाम को लेकर नहीं रहा है, बल्कि समग्रता में रहा है। उन्‍होंने 19 वीं और बीसवीं शताब्‍दी में दुनिया में विशेषकर पश्चिमी देशों में गैरबराबरी, शोषण के खिलाफ महिलाओं के आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि उन महिलाओं ने ब्रेड एण्‍ड रोजेज का नारा दिया। बेड एण्‍ड रोजेज' यानि हमारा संघर्ष सिर्फ रोटी के लिए नहीं है, हमारी लड़ाई ईज्‍ज़त, सम्‍मान की लड़ाई भी है, समानता की लड़ाई भी है। फिल्‍म महोत्सव में उदघाटन फिल्‍म के रूप में पाकिस्‍तानी फिल्‍म सेविंग फेसेज दिखायी गयी। समारोह में अध्‍यापक, कर्मी तथा छात्र प्रमुखता से उपस्थित थे।

हिंदी विश्वविद्यालय में नये कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र का स्वागत



महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने उनके स्‍वागत समारोह में शिक्षक समुदाय से अपील की कि आज की शिक्षा पद्धती व्‍याख्‍यान मूलक हो गयी है। बदलते समय के परिप्रेक्ष्‍य में हमें इसे संवादमूलक बनाने की आवश्‍यकता है। नये कुलपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद शुक्रवार को विश्‍वविद्यालय के शिक्षक संघ, शिक्षकेतर कर्मचारी संघ, फेकल्टि एण्‍ड ऑफीसर्स क्‍लब तथा साख संस्‍था की तरफ से उनका स्‍वागत किया गया। अपने स्‍वागत समारोह में कुलपति प्रो. मिश्र ने आगे कहा कि आज के समय में समस्‍या सूलझाने के लिए गांधी विचार अधिक प्रांसगिक है। यह विश्‍वविद्यालय गांधी विचारों का आईना है और हम इसे गांधीजी के विचारों का आधार बनाकर शिक्षा का उत्‍कृष्‍ट केंद्र बनाना चाहते हैं।

हबीब तनवीर सभागार में आयोजित स्‍वागत समारोह की अध्‍यक्षता वरिष्‍ठ प्रोफेसर प्रो. मनोज कुमार ने की। समारोह में कुलसचिव एवं वित्‍ताधिकारी संजय गवई, वरिष्‍ठ प्रोफेसर मनोज कुमार, कुलानुशासक प्रो. सूरज पालीवाल, नाट्यकला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा, शिक्षक संघ के उपाध्‍यक्ष डॉ. अनिल दुबे, शिक्षकेतर कर्मचारी संघ के अध्‍यक्ष विजयपाल पांडे मंचस्‍थ थे। इस अवसर पर पूर्व कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे प्रमुखता से उपस्थित थे। समारोह में कुलपति प्रो. मिश्र का स्‍वागत करते हुए प्रो. मनोज कुमार ने कहा कि गांधी विचारों पर अमल करने से हम अनेक मुश्किलों से निजात पा सकते हैं। उनके विचारों की शक्ति से हम बुराईयों पर विजय प्राप्‍त कर सकते हैं।
कुलसचिव एवं वित्‍ताधिकारी संजय गवई ने कहा कि कुलपति प्रो. मिश्र प्रशासनिक दृष्टि से भी रचनात्‍मक और सक्षम हैं। हम उनका स्‍वागत करते हैं। प्रो. सुरेश शर्मा ने कहा कि विश्‍वविद्यालय में संवादमूलक शिक्षा पद्धती अपनाने का कुलपति ने जो सुझाव दिया है उस दिशा में शिक्षक समुदाय आगे बढ़ेगा। शिक्षक संघ के अध्‍यक्ष डॉ. अनिल दुबे ने कहा कि अकादमिक उत्‍कृष्‍टता के प्रयासों को सफल बनाने के लिए हम सभी शिक्षक कुलपति के साथ हैं। विजयपाल पांडे ने आशा व्‍यक्‍त की कि आने वाले समय में विश्‍वविद्यालय में नई कार्य संस्‍कृति विकसित होगी।  समारोह का संचालन प्रो. सुरेश शर्मा ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन कुलानुशासक प्रो. सूरज पालीवाल ने प्रस्‍तुत किया। समारोह में शिक्षक तथा शिक्षकेतर कर्मचारी, अधिकारी एवं छात्र बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।