शनिवार, 21 सितंबर 2013

ब्‍लॉग में उबाऊ लेखन से बचना चाहिए

हिंदी ब्‍लॉगिंग और सोशल मीडिया पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के दूसरे दिन देश भर के ब्‍लॉगरों ने किया विमर्श

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में हिंदी ब्‍लॉगिंग और सोशल मीडिया पर आयोजित दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी एवं कार्यशाला के दूसरे दिन देशभर से आए ब्‍लॉगरों ने ब्‍लॉग में हिंदी साहित्‍य : साहित्‍य के कितने आयामों को छूता है हिंदी ब्‍लॉग और इंटरनेट विषय पर विमर्श किया। इस चर्चा में डॉ. अरविंद मिश्र, अविनाश वाचस्‍पति, शकुंतला शर्मा, अशोक कुमार मिश्र, डॉ. मनीष कुमार मिश्र मुन्‍तजिर’, डॉ. प्रवीण चोपड़ा, ललित शर्मा तथा वंदना अवस्‍थी ने हिस्‍सा लिया। चर्चा की शुरुआत करते हुए डॉ. अरविंद मिश्र ने कहा कि ब्‍लॉग और साहित्‍य का अंतर्सबंध है। ब्‍लॉग एक डिजिटल मीडिया के तौर पर हो गयी है। इस पर पोस्‍ट लिखते समय हमें उबाऊ लेखन से बचना चाहिए और कम से कम शब्‍दों में प्रभावी शैली से लिखना चाहिए ताकि पाठकों को रुचिकर लगे। उन्‍होंने माना कि एक दोतरफा संवाद का माध्‍यम है और एक कई पारंपरिक विधाओं का एक समुच्‍चय है। शकुंतला शर्मा ने कहा कि ब्‍लॉग को साहित्‍य की हर विधाओं में लाया जा सकता है। डॉ. अशोक कुमार मिश्र ने न्‍यू मीडिया, ब्‍लॉग और साहित्‍य के संबंधों को उल्‍लेखित करते हुए कहा कि हमारे पूर्व में विचार का और वर्तमान में सूचना का विस्‍फोट हुआ है। साहित्‍य भी पत्रकारिता का एक अंग रहा है इसे अलग नहीं किया जा सकता। अपने ब्‍लॉग पर सेहत और स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में लिखने वाले ब्‍लॉगर प्रवीण चोपड़ा ने कहा कि अपने अनुभवों को सांझा करने में भी ब्‍लॉग लिखा जाना चाहिए। अपने ब्‍लॉग से उन्‍होंने युवाओं में नशे की आदत, महिलाओं में व्‍याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या आदि विषयों पर लिखकर जनोपयोगी जानकारी सांझा की है और इनके ब्‍लॉग पढ़ने वाले लोगों की संख्‍या हजारों में है। ललित शर्मा ने तर्क दिया कि ब्‍लॉक के माध्‍यम से साहित्‍य को वैश्विक पटल मिल रहा है। अब मेरे ब्‍लॉग पर भारत ही नहीं अपितु यूक्रेन, मास्‍को और अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले हिंदी के जानकार लोग पढ़कर टिप्‍पणी करते है। वंदना अवस्‍थी ने कहा कि ब्‍लॉग साहित्‍य की सारी विधाओं को छूता है। ब्‍लॉग हिंदी साहित्‍य को अधिक विस्‍तारित और समृद्ध करने में अपनी भूमिका निभा रहा है। इस चर्चा में सहभागी ब्‍लॉगरों और विश्‍वविद्यालय के छात्रों ने हिस्‍सा लेकर अपनी जिज्ञासाएं व्‍यक्‍त की जिसका मंचासीन वक्‍ताओं ने समाधान किया। चर्चा का संचालन इष्‍टदेव सांकृत्‍यायन ने किया।

इस अवसर पर विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय, संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो.अनिल कुमार राय,नाट्यकला एवं फिल्‍म्‍ अध्‍ययन विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा, संगोष्‍ठी के संयोजक सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, मनीषा पांडे एवं समस्‍त प्रतिभागी ब्‍लॉगर शैलेश भारतवासी,आलोक कुमार, अनूप शुक्‍ल,डॉ. बलिराम धापसे, पंकज कुमार झा, शशि शर्मा, डॉ. विपुल जैन, संतोष त्रिवेदी, गिरीश पांडे, अंजनी कुमार राय, बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र, सतीश पावड़े, श्रीरमन मिश्र, अख्‍तर आलम, राजेश लेहकपुरे, बी. एस. मिरगे सहित छात्र एवं शोधार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।
प्रथम सत्र के बाद तकनीकी सत्र में विपुल जैन ने पावर प्‍वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्‍यम से ब्‍लॉग के तकनीकी पक्ष पर प्रतिभागियों को जानकारी दी। दोपहर के सत्र में हिंदी ब्‍लॉगिंग को सांस्‍थानिक समर्थन कैसे मिले और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में हिंदी ब्‍लॉगिंग का विषय कैसे शामिल हो इस पर विचार-विमर्श हुआ।     


1 टिप्पणी:

  1. उबाऊ लेखन से सिर्फ ब्‍लॉग में ही नहीं, सब जगह बचना चाहिए। पर समस्‍या यह है कि अपना लिखा किसी को उबाऊ लगता नहीं है।

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