गुरुवार, 22 अगस्त 2013

हिंदी विवि में पद्मश्री केशव मलिक का व्याख्यान

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के नाटय कला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग द्वारा कला की अप्रासंगिकता विषय पर व्‍याख्‍यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम अध्‍यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। व्‍याख्‍यान में प्रसिद्ध कवी, कला समीक्षक पद्मश्री केशव मलिक ने कहा कि कलाकार को संवेदनशील होना चाहिए। कला को संवेदना से अलग नहीं किया जा सकता कलाकार की आत्‍मशुद्धी एक अनिवार्य प्रक्रिया है। कला आपको अध्‍यात्‍म की ओर ले जाती है। अत: कलाकार को अपनी संवेदनाओं को आध्‍यात्‍म की ओर ले जाना चाहिए। इससे मनुष्‍य जन्‍म की सार्थकता प्राप्‍त होगी। हर समय नया या ओरीजिनल निर्माण करना, या करने की सोचना यह मात्र एक भ्रम होता है। अत: कार्य एवं प्रक्रिया पर ही कलाकार ने ध्‍यान देना चाहिए। इस प्रक्रिया को आत्‍मशुद्धी की प्रक्रिया बनाना चाहिए। अध्‍यात्‍म के सिवाय कला एक कारीगरी हो सकती है। उससे कलाकार कारीगर बन सकता है कलाकार नहीं। 
कार्यक्रम का प्रास्‍ताविक डॉ. सतीश पावडे तथा अतिथियों का परिचय डॉ. विधु खरे दास ने किया। इस अवसर पर प्रो. निर्मला जैन, शरद कुमार, प्रो. सुरज पालीवाल, प्रो. के. के. सिंह, डॉ. प्रीति सागर, डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. बिरपाल सिंह, डॉ. रामानुज अस्‍थाना, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. अमेश कुमार सिंह सहित छात्र-छात्राएं बड़ी  संख्‍या में उपस्थित थे। 

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