शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

हिंदी विश्वविद्यालय में 26, 27 अगस्त को मध्य भारत के आदिवासी विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में मानवविज्ञान विभाग के तत्‍वावधान में दिनांक 26 और 27 अगस्‍त को मध्‍य भारत में आदिवासी अशांति: कारण, चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ विषय पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का आयोजन किया जा रहा है। संगोष्‍ठी में देशभर के मानवविज्ञानी, वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी तथा सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहेंगे।
संगोष्‍ठी का उदघाटन विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा हबीब तनवीर सभागार में प्रात:11.00 बजे किया जाएगा। दो दिवसीय आयोजन में दीपक बघाई, बिधान नायक, प्रणव सहाय, आर. एस. गुप्‍ता, विजय रमण, प्रो. नदीम हसनैन, व्‍यंकट राव, प्रो. शीव प्रकाश, जे. जे. राय बर्मन, जी. बंदोपाध्‍याय, तुषार भट्टाचार्य, ललित सुर्जन आदि समेत लखनऊ, सागर, इलाहाबाद, बिलासपुर, रांची तथा हैदराबाद विश्‍वविद्यालय के मानवविज्ञानी सहभागिता करेंगे।
संगोष्‍ठी के आयोजन को लेकर मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक ने बताया कि महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा की स्‍थापना का मुख्‍य उद्देश्‍य हिंदी भाषा को माध्‍यम बनाकर पठन-पाठन एवं शोध करना है। इस विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना भारत के बिलकुल मध्‍य में है जो जनजाति बाहुल्‍य क्षेत्र है। ऐसी परिस्थिति में इस विश्‍वविद्यालय द्वारा जनजातियों के विभिन्‍न पहलुओं पर अध्‍ययन और विमर्श करने का अच्‍छा अवसर है।

उन्‍होंने कहा है कि विकास की जिस अवधारणा से आज पूरा देश प्रभावित है, उसी विकास की धारा ने एक ऐसे बड़े और महत्‍वपूर्ण सामाजिक समूह को पीछे छोड़ दिया है जो सदियों से मानव सभ्‍यता और संस्‍कृति का साक्षी रहा है। स्‍वतंत्रता पश्‍चात जिस विकास के मार्ग पर हम अग्रसर हुए उसने वर्तमान परिदृश्‍य में एक बड़ा विचित्र और विशिष्‍ट रूप धारण कर लिया है। विचित्र इसलिए क्‍योंकि जनजाति संस्‍कृति का समावेशन, संयोजन और संरक्षण संभव नहीं हो पाया और विशिष्‍ट इसलिए क्‍योंकि इस विकास के मॉडल का फायदा केवल एक विशेष वर्ग ही उठा पाया। इस संदर्भ में राज्‍य की भूमिका भी उत्‍साहवर्धक नहीं दिखती है। जनजातियों और आदिवासियों के हितों की रक्षा करने के लिए कानून और संविधान धाराएं तो हैं परंतु उनका सम्‍पूर्णता में निष्‍पादन और क्रियान्‍वयन दिखाई नहीं देता है। ऐसी परिस्थिति में असंतोष व्‍याप्‍त होना स्‍वाभाविक ही है। इस पृष्‍ठभूमि में इस दो दिवसीय संगोष्‍ठी का उद्देश्‍य जनजातीय अशांति के कारणों, चुनौतियों और संभावनाओं के संदर्भ में एक ऐसे विमर्श को सामने लाना है जो इस परिस्थिति में हमें राह दिखा सके। इस संगोष्‍ठी का महत्‍व इसलिए भी और बढ़ जाता है क्‍योंकि इसके माध्‍यम से न केवल अकादमिक बल्कि प्रशासनिक और सभ्‍य समाज के लोगों को एक मंच पर अपने विचार रखने का अवसर प्राप्‍त होगा। इससे विभिन्‍न पहलुओं पर आलोचनात्‍मक चर्चा के माध्‍यम से जनजातीय अशांति को गहराई से समझने का अवसर प्राप्‍त होगा। संगोष्‍ठी में ऐसे विशेष सत्रों का प्रावधान होगा जिनमें नक्‍सलवाद जैसी विशिष्‍ट अवधारणाओं पर परिचर्चा की जा सके। 

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