गुरुवार, 29 अगस्त 2013

सांप्रदायिकता के प्रति मीडिया के नजरिए में सकारात्मक बदलावःकुलपति श्री विभूति नारायण राय

(कुलपति विभूतिनारायण राय के साथ कोलकाता केंद्र में वेब पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम के पहले बैच के विद्यार्थी-बाएं से जया तिवारी, नीरु कुमारी सिंह, करुणा गुप्ता, सोनी कुमारी सिंह, अम्बरीन अरशद, फातिमा कनीज, विनय कुमार प्रसाद, नेहा गुप्ता, अभिषेक कुमार शर्मा, उपेंद्र शाह, अमित कुमार राय तथा एसोसिएट प्रोफेसर व कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे।)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति तथा हिंदी के जाने-माने उपन्यासकार विभूतिनारायण राय ने कहा है कि सांप्रदायिकता के प्रति मीडिया का नजरिया पिछले डेढ़ दशकों में सकारात्मक ढंग से बदला है। इधर के वर्षों में मीडिया में बहुसंख्यक समुदाय के ही पत्रकारों ने अल्पसंख्यकों के प्रति होनेवाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई है। श्री राय आज हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में वेब पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में उद्घाटन व्याख्यान दे रहे थे। उनके व्याख्यान का विषय था-सांप्रदायिकता और मीडिया।
श्री राय ने कहा कि मीडिया का काम केवल समाचार देना नहीं, बल्कि समाज के हित-अहित, लाभ-हानि को ध्यान में रखते हुए सकारात्मक पक्षों को उद्घाटित करना भी है। समस्या के प्रति समाज को संवेदनशील बनाना और लोक शिक्षण भी उसका काम है। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ इधर लगातार न्यायिक फैसले आए हैं, वह सकारात्मक बदलाव भी रेखांकित किए जाने योग्य है। व्याख्यान के बाद श्री राय ने उपेंद्र शाह, नेहा गुप्ता, अभिषेक कुमार शर्मा, अमित कुमार राय व अन्य विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिए।

कुलपति ने घोषणा की कि कोलकाता केंद्र में अगले सत्र से एम.फिल तथा पीएच.डी की पढ़ाई भी प्रारंभ हो जाएगी। उन्होंने कोलकाता केंद्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसके प्रभारी तथा विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डा. कृपाशंकर चौबे की प्रशंसा की। कार्यक्रम का संचालन कक्षा की छात्रा फातिमा कनीज तथा धन्यवाद ज्ञापन अम्बरीन अरशद ने किया। 

बुधवार, 28 अगस्त 2013

कुलपति राय ने किया स्‍टाफ क्‍लब तथा कर्मचारी साख संस्‍था के कार्यालय का उदघाटन

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में स्‍थापित स्‍टाफ क्‍लब तथा कर्मचारी साख संस्‍था के कार्यालय का उदघाटन बुधवार दि. 28 को प्रथमा भवन में कुलपति विभूति नारायण राय ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे, वित्‍ताधिकारी संजय गवई, स्‍टाफ क्‍लब के अध्‍यक्ष गिरीश पाण्‍डेय, साख संस्‍था के अध्‍यक्ष डॉ. अनिल दुबे, उपाध्‍यक्ष डॉ. बीरपाल सिंह यादव, सचिव राजेश अरोड़ा, कोषाध्‍यक्ष अमित पांडे संचालक मंडल के सदस्‍य डॉ. एम. एम. मंगोड़ी, डॉ. रामानुज अस्‍थाना, के. के. त्रिपाठी, हेमलता गोडबोले, पवन कुमार, संगीता मालवीया, विजयपाल पांडेय समेत मनोज द्विवेदी, डॉ. अनिल कुमार पाण्‍डेय, संजय तिवारी, डॉ. राजेश्‍वर सिंह, राजेश यादव, बी. एस. मिरगे, अमित विश्‍वास, सुधीर ठाकुर, डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, डॉ. ललित किशोर शुक्‍ल, डॉ. हरीश हुनगुंद, डॉ. डी. एन. प्रसाद, राजेश लेहकपुरे, डॉ. अख्‍तर आलम, पंकल पाटिल, अंजनी राय, विजय यादव, सुरेश यादव , शील खांडेकर, मनोज ठाकुर, शरद बकाले, गुंजन जैन, हेमा ठाकरे आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। 

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

हिंदी विश्‍वविद्यालय दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का समापन

विकास के केंद्र में हो जनता -कुलपति विभूति नारायण राय

विकास के नाम पर असंतुलन बढ़ रहा है। शहरीकरण की वजह से आदिवासी के संसाधनों का दोहन हो रहा है। यह असंतुलन आगे चलकर आत्‍मघाती हो सकता है। ऐसे में हमें चाहिए कि आदिवासी समुदाय को न्‍याय दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाकर उन्‍हें विकास के केंद्र में रखा जाए। उक्‍त उदबोधन कुलपति विभूति नारायण राय ने व्यक्‍त किये। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में मानवविज्ञान विभाग द्वारा भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मानव संग्रहालय के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित दो दिवसीय (26 व 27 अगस्‍त) राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का समापन मंगलवार को हबीब तनवीर सभागार में कुलपति विभूति नारायण राय की अध्‍यक्षता में हुआ। इस अवसर पर वे बोल रहे थे।
इस दौरान पर मंच वेंकट राव, डॉ. फरहद मलिक उपस्थित थे। संगोष्‍ठी के समापन पर देशभर से उपस्थित हुए मानवविज्ञानी, सेवानिवृत्‍त आईपीएस अधिकारी, शिक्षक तथा विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कुलपति राय ने कहा कि दो दिन के दौरान हमने विभिन्‍न क्षेत्रों से आए लोगों के विचार सुने। आदिवासी के विकास को लेकर हमने दोनों पक्ष को सुना। इस चर्चा से स्‍पष्‍ट हुआ कि जल, जंगल और जमीन, खनिज सम्‍पदा जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कब्‍जा हो रहा है। उनकी आबादी भी घट रही है। उनका संतुलित और स्‍वस्‍थ विकास बाधित हो रहा है। स्‍वाधीन भारत में विकास का जो मॉडल हमने तय किया था, उसे हम प्रत्‍यक्ष रूप से साकार नहीं कर पाए है। उन्‍होंने माना कि जनता को विकास के केंद्र में नहीं रखा जाता तबतक हमें इसपर सफलता हासिल नहीं होगी।

इस दौरान वेंकट राव ने भी विचार रखे। उन्‍होंने कहा कि लोगों को विकास चाहिए। इसके लिए हमें दृष्टिकोन बदलने की आवश्‍यकता है। समापन सत्र में वरिष्‍ठ पत्रकार ललित सुरजन, प्रफुल्‍ल सामंत, प्रो. बी. पी. शर्मा, सेवानिवृत्‍त आईएएस अधिकारी तथा सामाजिक कार्यकर्ता कमल टावरी, रवि गुप्‍ता आदि ने संगोष्‍ठी के आयोजन के बारे में अपनी प्रतिक्रियाएं व्‍यक्‍त की। उन्‍होंने कुलपति राय को इस प्रकार के आयोजन के लिए धन्‍यवाद दिया। समापन सत्र का संचालन मानवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. निशीथ राय ने किया। इस दौरान देशभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों से आए करीब 70 प्रतिभागी, मानवविज्ञानी, सामाजिक कार्यकर्ता,  सेवानिवृत्‍त आईपीएस अधिकारी तथा शोधार्थी व छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।   


मध्य भारत में आदिवासी अशांति : कारण, चुनौतियां और संभावनाएं विषय पर हिंदी विवि में दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का दूसरा दिन 

शिक्षा से होगा आदिवासी समुदाय का विकास 

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में मानवविज्ञान विभाग द्वारा भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मानव संग्रहालय के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित दो दिवसीय (26 व 27 अगस्‍त) राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के में विभिन्‍न अकादमिक सत्रों में देशभर से आए मानवविज्ञानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्‍तुत कर आदिवासी समुदाय के विकास की दिशा में अपने मंतव्‍य रखे। वक्‍ताओं की राय थी कि आदिवासी समुदाय के विकास के लिए विकास की नीतियां और क्रियान्‍वयन में तालमेल होना चाहिए ताकि उनमें व्‍याप्‍त अशांति को विकास की दिशा में मोड़ा जा सके। वक्‍ताओं ने माना कि शिक्षा ही आदिवासी समुदाय के उन्‍नयन के लिए प्रभावी होगी।
राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के उदघाटन के बाद हबीब तनवीर सभागार में आदिवासी आंदोलन पर केंद्रित प्रथम सत्र मानवविज्ञानी प्रो. नदीम हसनैन की अध्‍यक्षता में सम्‍पन्‍न हुआ। सत्र के सह-अध्‍यक्ष थे पुणे विश्‍वविद्यालय के डॉ. रामदास जी. गंभीर। सत्र में हैदराबाद विश्‍वविद्यालय के प्रो. आर. शिव प्रसाद ने विशेष व्‍याख्‍यान दिया। इस सत्र में अखिल भारतीय सोशल फोरम के समन्‍वयक सुपरिचित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुरेश खैरनार, रायपुर के पत्रकार ललित सुरजन, जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय नई दिल्‍ली के डॉ. जोसेफ बारा, सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्‍ल सामंतारा, विश्‍वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. निशीथ राय, सहायक प्रोफेसर डॉ. वीरेन्‍द्र प्रताप यादव आदि ने शोध प्रपत्र प्रस्‍तुत किये।
विशेष व्‍याख्‍यान में प्रो. शिव प्रसाद ने आदिवासियों के विकास में प्राकृतिक स्रोत, गरीबी और साधनों पर प्रकाश ड़ाला। उनका कहना था कि बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में सबसे अधिक प्रभावित आदिवासी ही होते हैं। विकास और पुनर्वास में एक प्रकार का विरोधाभास नज़र आता है। उन्‍होंने हरित क्रांति और उसका आदिवासी जीवन पर प्रभाव तथा 1991के बाद के घटनाक्रम पर विस्‍तार से चर्चा की। डॉ. सुरेश खैरनार ने नागपुर शहर के आसपास के 150 किलोमीटर के दायरे में सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक परिस्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में सम्‍पदा के अधिकार का क्रियान्‍वयन होना चाहिए। जिनकी जमीन किसी परियोजना में चली जाने पर वें शहर की तरफ भागते हैं। जमीन पर निर्भर आदिवासी में अशांति पैदा होती  है। पत्रकार ललित सुरजन ने माना कि पिछले 50 वर्षों में आदिवासियों की सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक स्थिति बदल गयी है। शिक्षा के लिए जो लोग शहर आ रहे है वे अब गांव की तरफ मुड़कर नहीं देख रहे हैं। नीति निर्धारण और कार्यान्‍वयन में काफी अंतर आया है। डॉ. जोसेफ बारा ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र के विकास में उद्योग, संचार, बिजली और सभी प्रकार की मूलभूत सुविधाओं की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि 1964 में पं. जवाहरलाल नेहरु ने आदिवासी विकास का जो मॉडल सुझाया था उसे कारगर तरीके से अमल में नहीं लाया जा सका। डॉ. निशीथ राय ने नक्‍सलवाद और आदिवासी अशांति विषय पर पावर प्‍वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्‍यम से अपनी बात रखी। प्रो. वीरेन्‍द्र प्रताप यादव ने मध्‍य भारत में जनजातीय असंतोष का इतिहास और कारण : एक मानवशास्‍त्रीय विश्‍लेषण विषय पर शोध पत्र प्रस्‍तुत किया। उन्‍होंने गुजरात,आसाम, झारखंड और छत्‍तीसगड़ में व्‍याप्‍त अशांति पर चर्चा की।

संगोष्‍ठी का दूसरा अकादमिक सत्र जमीन और औद्योगिकीकरण पर आधारित था। इस सत्र की अध्‍यक्षता प्रो. वेंकट राव ने की। डॉ. एस. मुण्‍डा सत्र के सह-अध्‍यक्ष थे। सत्र में जे. जे. रॉय बर्मन, डॉ. रामदास गंभीर, शिल्‍ला डहाके, डॉ. सी. साहु, डॉ. विजय प्रकाश शर्मा, प्रो. बी. एम. मुखर्जी, डॉ. प्रभात के. सिंह,डॉ. चंपक कुमार साहु तथा डॉ. प्रेरणा ए.पी. सिंह ने प्रपत्र पढ़े।

संगोष्‍ठी के दूसरे दिन मंगलवार को राजनैतिक धार्मिक कारण और सरकारी नीतियां विषय पर चर्चा हुई। सत्र की अध्‍यक्षता प्रो. आर. शिवप्रसाद ने की। इस दौरान जे. जे. बर्मन और प्रभात कुमार सिंह मंचासीन थे। सत्र में प्रो. विजय रमण, महेंद्रकुमार मिश्रा,जी. पी. मिश्रा, डॉ. एस. एन. मुण्‍डा, सपन कुमार कोले, के. एन. र्श्‍मा, जोशी रूफिना तिर्कि, जी. एन. झा, जितेन्‍द्र कुमार प्रेमी,पयंक प्रकाश, मनीष कुमार टुडू, दिव्‍य भारती, रवि कुमार आदि ने शोध पत्र प्रस्‍तुत किये। सत्र का संयोजन सहायक प्रोफेसर अनिर्बाण घोष तथा आशुतोष कुमार ने किया। इस दौरान देशभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों से आए करीब 70 प्रतिभागी, मानवविज्ञानी, सामाजिक कार्यकर्ता,  सेवानिवृत्‍त आईपीएस अधिकारी तथा शोधार्थी व छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।   

सोमवार, 26 अगस्त 2013

मध्य भारत में आदिवासी अशांति : कारण, चुनौतियां और संभावनाएं विषय पर संगोष्‍ठी का उदघाटन

आदिवासियों के लिए सम्‍मानजनक जीवन की स्थिति पैदा हो-कुलपति विभूति नारायण राय

आदिवासियों के विकास के लिए बहु-आयामी नीति को अपनाकर उनके लिए सम्‍मानजनक जीवन जीने की स्थिति पैदा होनी चाहिए। उनका सम्‍मान बचाकर उन्‍हें समाज की मुख्‍य धारा में शामिल करने के लिए प्रयास होने चाहिए। उक्‍त उदबोधन महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने व्‍यक्‍त किये। वे विश्‍वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग द्वारा भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मानव संग्रहालय के संयुक्‍त तत्‍वाधान में आयोजित दो दिवसीय (26 व 27 अगस्‍त)  राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के उदघाटन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए बोल रहे थे। इस अवसर पर मंच पर विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति तथा सुविख्‍यात मानवविज्ञानी प्रो. नदीम हसनैन, केंद्रीय गृह मंत्रालय में सलाहकार के. विजय कुमार, कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे तथा मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक उपस्थित थे।
अपने संबोधन में कुलपति राय ने कहा कि हम जिस क्षेत्र में है वह क्षेत्र भारत का मध्‍य क्षेत्र है। लगभग 150 किलोमीटर परिक्षेत्र में भारत की अधिकतर आदिवासी  इसी क्षेत्र में है। यहां जंगल, जल, खनिज संपदा और प्राकृतिक संपदा बृहत प्रमाण में मौजूद है। इसलिए इस क्षेत्र को प्राकृतिक सम्‍पदा की अधिक लूट हो रही है। बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों की नजर भी इस क्षेत्र पर मंडराती रही है। उनके लिए यह क्षेत्र लूट का अड्डा बना हुआ है। वे चाहते हैं कि इस क्षेत्र की सम्‍पदाओं पर अपना अधिकार जमाकर इसे वर्षों तक लूटा जा सके। हमें चाहिए कि विकास के नाम पर जो घटित हो रहा है उसे रोका जाए और विकास के समान तरीके इस्तेमाल कर आदिवासी समुदाय को भी इसकी भागीदारी मिल सके।


संगोष्‍ठी में बीज वक्‍तव्‍य प्रो. नदीम हसनैन ने दिया। अपने विद्वत्‍तापूर्ण वक्‍तव्‍य में उन्‍होंने दो मुद्दों को उठाया। एक सुरक्षा केंद्रित आंतरिक सुरक्षा और दूसरा सामाजिक-राजनीतिक लड़ाई। आदिवासी संघर्ष और असंतोष का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि लगभग 150 जिलों में आदिवासी असंतोष व्‍याप्‍त है और इससे 30 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसके पीछे दो सौ वर्षों का इतिहास है। आदिवासियों को उनके जंगल और जमीन से बेदखल कर उनका शोषण किया गया। उनके विकास के लिए नीति तो बदली गयी परंतु व्‍यवहार वहीं रहा। विकास की केवल परत चढ़ाई गयी, इसका अपेक्षित परिणाम नहीं निकला। विकास के नाम पर बने हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्‍ट जैसी परियोजनाए बनी और इससे 3 से 5 करोड़ लोग विस्‍थापित हुए। इनमें से मात्र 20 प्रतिशत लोगों का ही पुनर्वास हो पाया। आदिवासी समुदाय के विस्‍थापन को लेकर उच्‍चतम न्‍यायालय ने जमीन के लिए जमीन का सिद्धांत अपनाया जाए और मुआवजा बाजार मूल्‍यों पर दिया जाए यह जो निर्णय दिया था उसे नजरअंदाज किया जा रहा है। आदिवासियों को पानी, शाला, अस्‍पताल और कृषि चाहिए ताकि वे लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में अपना जीवनयापन कर सके।
इस अवसर पर सेवानिवृत्‍त आईपीएस अधिकारी तथा गृह मंत्रालय में सलाहकार के. विजय कुमार ने कहा कि आदिवासी विकास को लेकर सेंट्रल एप्रोच होना चाहिए। उनकी समस्‍याओं को सुलझाने के लिए उन्‍होंने फुटबाल मैच का उदाहरण दिया। सरकार और माओवाद के इस खेल में जनता को रेफरी की भूमिका में होना चाहिए ताकि दोनों के बीच जारी संघर्ष का समाधान निकाला जा सके। उन्‍होंने कहा कि संघर्ष को केवल पुलिस एक्‍शन से खत्‍म नहीं किया जा सकता। लोगों को जागरूक करते हुए इस समस्‍या का समाधान खोजने की बात विजय कुमार ने कही। इस अवसर पर मध्‍य भारत के आदिवासी :समस्‍याएं और संभावनाएंशीर्षक के पुस्‍तक तथा संगोष्‍ठी की स्‍मारिका एवं शोध संक्षेपिका का प्रकाशन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।

स्‍वागत वक्‍तव्‍य मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक ने दिया। उन्‍होंने संगोष्‍ठी की रूपरेखा प्रस्‍तुत कर भारतभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालय तथा संस्‍थाओं से आए प्रतिभागियों का स्‍वागत किया। उदघाटन समारोह का संचालन मानवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. वीरेन्‍द्र प्रताप यादव ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे ने किया। समारोह में वर्धा जिला पुलिस अधीक्षक अविनाश कुमार, वरिष्‍ठ आईपीएस आर. एस. गुप्‍ता, विजय रमण, विधान नायक, प्रो. व्‍यंकट राव, प्रो. शिव प्रसाद, प्रो. राम गंभीर, प्रो. विजय प्रकाश शर्मा,प्रो. जे. जे. रायबहादूर, डॉ. के. के. शर्मा, डॉ. पी. के. सिंह, आवासीय लेखक ऋतुराज, विनोद कुमार शुक्‍ल, प्रो. अनिल के. राय, प्रो. वासंती रमण, प्रो. शंभू गुप्‍त, प्रो. जोसेफ बारा,प्रो. राम शरण जोशी, कहानीकार संजीव, डॉ. अनिल कुमार पाण्‍डेय, प्रो. सुरेश शर्मा, डॉ. विधु खरे दास, डॉ. सतीश पावडे, डॉ. रामानुज अस्‍थाना, डॉ. निशीथ राय, डॉ. राजेश्‍वर सिंह, डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, डॉ. ओम प्रकाश भारती, डॉ. रूपेश कुमार सिंह, रवि शंकर सिंह, बी. एस. मिरगे, राजेश यादव, अशोक मिश्र, अमित विश्‍वास,आशुतोष कुमार सहित देशभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालय से आए मानवविज्ञानी, सामाजिक कार्यकर्ता, अध्‍यापक, अधिकारी एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे। 

हरप्रीत कौर को साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार मिला 

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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

हिंदी विश्वविद्यालय में 26, 27 अगस्त को मध्य भारत के आदिवासी विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में मानवविज्ञान विभाग के तत्‍वावधान में दिनांक 26 और 27 अगस्‍त को मध्‍य भारत में आदिवासी अशांति: कारण, चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ विषय पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का आयोजन किया जा रहा है। संगोष्‍ठी में देशभर के मानवविज्ञानी, वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी तथा सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहेंगे।
संगोष्‍ठी का उदघाटन विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा हबीब तनवीर सभागार में प्रात:11.00 बजे किया जाएगा। दो दिवसीय आयोजन में दीपक बघाई, बिधान नायक, प्रणव सहाय, आर. एस. गुप्‍ता, विजय रमण, प्रो. नदीम हसनैन, व्‍यंकट राव, प्रो. शीव प्रकाश, जे. जे. राय बर्मन, जी. बंदोपाध्‍याय, तुषार भट्टाचार्य, ललित सुर्जन आदि समेत लखनऊ, सागर, इलाहाबाद, बिलासपुर, रांची तथा हैदराबाद विश्‍वविद्यालय के मानवविज्ञानी सहभागिता करेंगे।
संगोष्‍ठी के आयोजन को लेकर मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक ने बताया कि महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा की स्‍थापना का मुख्‍य उद्देश्‍य हिंदी भाषा को माध्‍यम बनाकर पठन-पाठन एवं शोध करना है। इस विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना भारत के बिलकुल मध्‍य में है जो जनजाति बाहुल्‍य क्षेत्र है। ऐसी परिस्थिति में इस विश्‍वविद्यालय द्वारा जनजातियों के विभिन्‍न पहलुओं पर अध्‍ययन और विमर्श करने का अच्‍छा अवसर है।

उन्‍होंने कहा है कि विकास की जिस अवधारणा से आज पूरा देश प्रभावित है, उसी विकास की धारा ने एक ऐसे बड़े और महत्‍वपूर्ण सामाजिक समूह को पीछे छोड़ दिया है जो सदियों से मानव सभ्‍यता और संस्‍कृति का साक्षी रहा है। स्‍वतंत्रता पश्‍चात जिस विकास के मार्ग पर हम अग्रसर हुए उसने वर्तमान परिदृश्‍य में एक बड़ा विचित्र और विशिष्‍ट रूप धारण कर लिया है। विचित्र इसलिए क्‍योंकि जनजाति संस्‍कृति का समावेशन, संयोजन और संरक्षण संभव नहीं हो पाया और विशिष्‍ट इसलिए क्‍योंकि इस विकास के मॉडल का फायदा केवल एक विशेष वर्ग ही उठा पाया। इस संदर्भ में राज्‍य की भूमिका भी उत्‍साहवर्धक नहीं दिखती है। जनजातियों और आदिवासियों के हितों की रक्षा करने के लिए कानून और संविधान धाराएं तो हैं परंतु उनका सम्‍पूर्णता में निष्‍पादन और क्रियान्‍वयन दिखाई नहीं देता है। ऐसी परिस्थिति में असंतोष व्‍याप्‍त होना स्‍वाभाविक ही है। इस पृष्‍ठभूमि में इस दो दिवसीय संगोष्‍ठी का उद्देश्‍य जनजातीय अशांति के कारणों, चुनौतियों और संभावनाओं के संदर्भ में एक ऐसे विमर्श को सामने लाना है जो इस परिस्थिति में हमें राह दिखा सके। इस संगोष्‍ठी का महत्‍व इसलिए भी और बढ़ जाता है क्‍योंकि इसके माध्‍यम से न केवल अकादमिक बल्कि प्रशासनिक और सभ्‍य समाज के लोगों को एक मंच पर अपने विचार रखने का अवसर प्राप्‍त होगा। इससे विभिन्‍न पहलुओं पर आलोचनात्‍मक चर्चा के माध्‍यम से जनजातीय अशांति को गहराई से समझने का अवसर प्राप्‍त होगा। संगोष्‍ठी में ऐसे विशेष सत्रों का प्रावधान होगा जिनमें नक्‍सलवाद जैसी विशिष्‍ट अवधारणाओं पर परिचर्चा की जा सके। 

डॉ.दाभोलकर की हत्या विवेकवादी आंदोलन पर हमला

हिंदी विश्‍वविद्यालय के बुद्धिजीवियों ने की हत्‍या की भर्त्‍सना

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के लगभग पचास बुद्धिजीवियों ने महाराष्‍ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अग्रणी और मराठी साप्‍ताहिक साधना के संपादक डॉ.नरेन्‍द्र दाभोलकर की हत्‍या का निषेध किया है और विवेकवादी आंदोलन के प्रति सहभागिता प्रदर्शित की है।
इन बुद्धिजीवियों जारी हस्‍ताक्षरित वक्‍तव्‍य में कहा गया है कि डॉ.दाभोलकर की साजिशाना हत्‍या से जाहि़र होता है कि देश में अंधश्रद्धा, धर्मांधता, अंधराष्‍ट्रवाद, सांप्रदायिक राष्‍ट्रवाद और अंधअर्थवाद का खतरनाक गठजोड़ कायम हो र‍हा है। निहित स्‍वार्थी तत्‍व विवेकवादी आवाजों को दबाने में तत्‍पर हैं। इसके खिलाफ कानून को अपना कर्तव्‍य तत्‍तरता से अंजाम देना चाहिए तभी अंधश्रद्धामूलक और धर्मांध शक्तियों को रोका जा सकेगा। वक्‍तव्‍य में यह भी कहा गया है कि इन ताकतों के खिलाफ राजसत्‍ता लगभग निष्किय है जो भावी पीढि़यों को अघोषित मानसिक दासता की गिरफ़्त में लेना चाहती हैं। डॉ.दाभोलकर की शहादत विवेकवादी आंदोलन को तेज करने का संदेश दे रही है। हम इस संदेश के सहभागी हैं।

वक्‍तव्‍य पर विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय, चार प्रख्‍यात आवासीय लेखकों दूधनाथ सिंह, ऋतुराज, विनोद कुमार शुक्‍ल और संजीव के अलावा प्रो.मनोज कुमार, प्रो.रामशरण जोशी, प्रो.सूरज पालीवाल, प्रो.के.के.सिंह, प्रो.सुरेश शर्मा, प्रो.वासंती रमण, प्रकाश चन्‍द्रायन, डॉ.फरहद मलिक, डॉ.एम.एम.मंगोड़ी, डॉ.जयप्रकाश धूमकेतु’, डॉ.ओ.पी.भारती, अशोक मिश्र, डॉ.रवीन्‍द्र बोरकर, अमित राय, संदीप सपकाळे, सुप्रिया पाठक, डॉ.सुरजीत कु.सिंह, डॉ.राजीव रंजन राय, डॉ.सतीश पावड़े, राकेश श्रीमाल, डॉ.अमित विश्‍वास, डॉ.सत्‍यम सिंह, डॉ.रयाज हसन, हरप्रीत कौर, अनामी शरण बबल सहित पचास बुद्धिजीवियों के हस्‍ताक्षर हैं। 

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

हिंदी विवि में पद्मश्री केशव मलिक का व्याख्यान

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के नाटय कला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग द्वारा कला की अप्रासंगिकता विषय पर व्‍याख्‍यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम अध्‍यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। व्‍याख्‍यान में प्रसिद्ध कवी, कला समीक्षक पद्मश्री केशव मलिक ने कहा कि कलाकार को संवेदनशील होना चाहिए। कला को संवेदना से अलग नहीं किया जा सकता कलाकार की आत्‍मशुद्धी एक अनिवार्य प्रक्रिया है। कला आपको अध्‍यात्‍म की ओर ले जाती है। अत: कलाकार को अपनी संवेदनाओं को आध्‍यात्‍म की ओर ले जाना चाहिए। इससे मनुष्‍य जन्‍म की सार्थकता प्राप्‍त होगी। हर समय नया या ओरीजिनल निर्माण करना, या करने की सोचना यह मात्र एक भ्रम होता है। अत: कार्य एवं प्रक्रिया पर ही कलाकार ने ध्‍यान देना चाहिए। इस प्रक्रिया को आत्‍मशुद्धी की प्रक्रिया बनाना चाहिए। अध्‍यात्‍म के सिवाय कला एक कारीगरी हो सकती है। उससे कलाकार कारीगर बन सकता है कलाकार नहीं। 
कार्यक्रम का प्रास्‍ताविक डॉ. सतीश पावडे तथा अतिथियों का परिचय डॉ. विधु खरे दास ने किया। इस अवसर पर प्रो. निर्मला जैन, शरद कुमार, प्रो. सुरज पालीवाल, प्रो. के. के. सिंह, डॉ. प्रीति सागर, डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. बिरपाल सिंह, डॉ. रामानुज अस्‍थाना, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. अमेश कुमार सिंह सहित छात्र-छात्राएं बड़ी  संख्‍या में उपस्थित थे। 

सोमवार, 19 अगस्त 2013

कोलकाता केंद्र में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

नई पीढ़ी ने शाहबाग आंदोलन को जिंदा रखाः अंजन राय

अंजन राय का पुष्पगुच्छ देकर सम्मान करते राजेंद्र राय। साथ में डा. कृपाशंकर चौबे।
बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार अंजन राय ने कहा है कि नई पीढ़ी पर यह आरोप गलत है कि वह फेसबुक और मोबाइल में ही व्यस्त रहती है और कमर के नीचे खिलकाकर पैंट पहनकर फैशन का फूहड़ प्रदर्शन कर रही है। सही तो यह है कि यही नई पीढ़ी जनांदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। श्री राय ने कहा कि बांग्लादेश में शाहबाग के जनांदोलन को वहां के किशोरों ने ही न सिर्फ जीवित रखा, बल्कि उसे फैलाया भी। श्री राय महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में जनांदोलन और नई पीढ़ी विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। श्री राय ने कहा कि उस पार 1952 में भाषा को लेकर जनांदोलन हुआ था जिसकी परिणति मुक्ति संग्राम के रूप में हुई। उस संग्राम में भारत की उल्लेखनीय भूमिका रही। मुक्ति संग्राम के योद्धाओं को मारनेवालों को दंडित करने की मांग को लेकर शाहबाग में आंदोलन शुरू हुआ जो बांग्लादेश के हर जिले में फैल गया। उन्होंने कहा कि जनांदोलनकर उस पार के लोगों ने जो हासिल किया, वह इस पार के बंगाल के लोग हासिल नहीं कर पाए।

संगोष्ठी को बांग्ला पत्रकार सुकुमार मित्र, अरुप रक्षित, एके भट्टाचार्य, अविरंजन कर, शिवब्रत बसु, राजीव विश्वास और पीयूसीएल के नेता हरेराम चौबे ने भी संबोधित किया और जोर देकर कहा कि बंगाल के लोग शाहबाग के साथ जनांदोलन के साथ हैं। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रसिद्ध समाजवादी राजेंद्र राय ने की। संचालन महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने किया। आरंभ में विश्वविद्यालय की तरफ से अंजन राय का सम्मान किया गया।

रविवार, 18 अगस्त 2013

हिंदी विश्वविद्यालय में मनाया गया स्वतंत्रता दिवस

शक्तिशाली देश बनकर उभर रहा है भारत -विभूति नारायण राय


आज हमारा देश निरंतर कड़ी मेहनत और लगन से काम करने के कारण विश्व का एक शक्तिशाली और प्रतिभाशाली देश बनकर उभर रहा है। हमें देश के विकास के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। उक्‍त प्रतिपादन आजादी की 67 वीं वर्षगांठ के मौके पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने किए।
उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय के मुख्‍य प्रशासनिक भवन के प्रांगण में तिरंगा फहराया। कुलपति राय ने विश्वविद्यालय परिवार के सभी शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं को स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी। उन्‍होंने छात्रों को खुशखबरी देते हुए बताया कि अगले सत्र से विश्वविद्यालय में डी.एड., बी.एड. और एम. एड. के पाठ्यक्रम शुरू हो जाएंगे। कुलपति राय ने बताया कि हाल ही में विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग ने शिक्षा विद्यापीठ शुरू करने के संदर्भ में अनुमति दे दी है। शिक्षा विद्यापीठ के भवन निर्माण की तैयारी शुरू हो गयी है और अगले सत्र से यह विद्यापीठ कार्यरत हो जाएगा साथही शिक्षकों की भर्ती कर ली जाएगी। इन पाठ्यक्रमों की कक्षाएं अगले साल से संचालित होने लगेंगी। इस अवसर पर कुलपति राय ने ने विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मियों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रमाणपत्र प्रदान कर पुरस्कृत किया। 

भवनों का उदघाटन और शिलान्यास

स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर विश्वविद्यालय में कई भवनों का उदघाटन और शिलान्यास किया गया। गजानन माधव मुक्तिबोध के तीन पुत्रों रमेश, दिवाकर और  दिलीप मुक्बिोध की उपस्थिति में गजानन माधव मुक्तिबोध भवन का उदघाटन प्रखर हिन्दी आलोचक प्रो. निर्मला जैन ने फीता काट कर किया।
दूर शिक्षा निदेशालय भवन और अकादमिक भवन का शिलान्यास केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियन्ता डॉ के. एम. सोनी ने कुलपति की अध्यक्षता में फीता काट कर किया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय में आए सभी अतिथियों ने महापंडित राहुल सांकृत्यायन केन्द्रीय पुस्तकालय और स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय का निरीक्षण किया तथा इससे अभिभूत होकर कुलपति को धन्यवाद ज्ञापित किया।   
कुलपति राय ने की वृक्षारोपण अभियान की शुरूआत
विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में कुलपति ने वृक्षारोपण कर इस अभियान की शुरूआत की। इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ कैलाश खामरे, कुलानुशासक प्रो. सूरज पालीवाल, विशेष कर्तव्य अधिकारी नरेन्द्र सिंह, परिसर विकास के राजेश्वर सिंह, राजीव पाठक, तुषार वानखेड़े, पर्यावरण क्लब के संयोजक अनिर्वाण घोष, पर्यावरण क्लब के सदस्य असिस्टेन्ट प्रोफेसर धरवेश कठेरिया, सुरक्षा अधिकारी राजेश घोड़मारे, राष्ट्रीय सेवा योजना के संयोजक सतीश पावडेअसि. प्रो. रवि कुमार, जनसंपर्क अधिकारी बीएस मिरगे, बिरसामुंडा छात्रावास व गोरख पांडे छात्रावास के केयर टेकर मनोज कुमार व सचिन यादव सहित भारी संख्या में छात्र -छात्राएं मौजूद रहे।  
उत्तरी परिसर में बनेगा भगत सिंह पार्क
विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में वृक्षारोपण के दौरान राष्ट्रीय सेवा योजना के संयोजक सतीश पावडे ने कुलपति के समक्ष एक हरा-भरा पार्क बनाने का प्रस्ताव रखा। कुलपति ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर उत्तरी परिसर में भगत सिंह के नाम पर पार्क बनाने के लिए जमीन तथा राशि देने का आश्वासन दिया।
   
साहित्यक धरोहर और संरक्षण विषय पर आयोजित हुआ व्याख्यान
विश्‍वविद्यालय में स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के तत्वाधान में हबीब तनवीर सभागार में साहित्यक धरोहर और उसके संरक्षण को लेकर एक व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में हिंदी साहित्य की प्रखर आलोचक निर्मला जैन उपस्थित थी। इस अवसर पर विश्वविद्यालय में कवि एवं साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध के तीन पुत्रों रमेश, दिवाकर और दिलीप मुक्तिबोध एक साथ नजर आए।
    अध्यक्षीय उदबोधन में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि यह संग्रहालय हिंदी विश्वविद्यालय की एक नई पहचान के रूप में उभर रहा है। इसमें प्राचीनकाल के कवियों की कृतियों और दुर्लभ पाण्डुलिपियों को रखा गया है जिनका किसी दूसरी जगह पर मिलना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि संग्रहालय में रखी वस्तुओं को देखकर किसी देश की संस्कृति और सभ्यता को समझा जा सकता है। साथ ही कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय में गांधी हिल के पास लगभग 12 करोड़ रूपए की लागत से एक नया संग्रहालय बनाया जा रहा है। जो विश्वविद्यालय का बड़ा और अद्वितीय संग्रहालय होगा जिसको वर्धा में आने वाले सभी पर्यटकों के लिए खोला जाएगा। उन्‍होंने कहा कि इस संग्रहालय में कला, संगीत, संस्‍कृति, साहित्‍य एवं नृत्‍य की अलग-अलग दीर्घाएं होंगी।
     कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि विश्‍वविद्यालय के संग्रहालय में आज जिस तरह से प्राचीन लेखकों की रचनाएं एवं पाण्डुलिपियां आ रही हैं यह एक सराहनीय पहल है। उन्‍होंने कहा कि संग्रहालय को चलाने और इसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के शिक्षकों की हैं। उन्होंने कहा कि हमें संग्रहालय का महत्व तब पता चलता है जब वे संग्रहालय में जाकर प्राचीन वस्तुओं को पढ़ते और देखते है। संग्रहालय हमें इतिहास के बारे में ज्ञान देता है।
    
संग्रहालय के प्रभारी तथा अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. देवराज ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कथाकार प्रो. दूधनाथ सिंह ने गजानन माधव मुक्तिबोध को लम्बी कविताओं का जनक और अनुगमनीय कवि बताया। हिंदी साहित्य के अधिष्ठाता प्रो. सूरज पालीवाल ने संग्रहालय की आवश्यक्ता और उसके संरक्षण विषय पर बोलते हुए कहा कि ये संग्रहालय विश्वविद्यालय की एक बड़ी विरासत है।उन्होंने बताया कि आज हमारे बीच इस संग्रहालय में कई तरह की प्राचीन पाण्डुलिपियां और विभिन्न सभ्यताओं से जुडी वस्तुएं मौजूद हैं। इस दौरान कवि विनोद कुमार शुक्‍ल ने मुक्तिबोध से जुड़े संस्‍मरण सुनाएं। वहीं केशव मलिक ने सत्‍यवती मलिक के जीवन के अनुछुए पहलुओं पर प्रकाश ड़ाला। आवासीय लेखक ऋतुराज, प्रो. सुरेश शर्मा, प्रो. के. के. सिंह, डॉ. रामानुज अस्‍थाना आदि ने संग्रहालय के भविष्‍य की रूपरेखा और विकास के बारे में अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन साहित्‍य विभाग की एसोसिएट  प्रो. डॉ प्रीति सागर ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक संग्रहालय में कार्यरत व्याकरण अनुषंगी डॉ श्रीरमण मिश्र ने किया। कार्यक्रम में अध्‍यापक, अधिकारी एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में मौजूद रहे।               

साहित्यकारों ने सौंपी पाण्डुलिपियां व रचनाएं

इस समारोह में साहित्यकारों ने स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के विकास के लिए विभिन्न साहित्यकारों की पाण्डुलिपियां और उनसे संबंधित अन्य सामग्री कुलपति विभूति नारायण राय को सौंपी। रमेश मुक्तिबोध द्वारा मुक्तिबोध की पाण्‍डुलिपियां, प्रो. दूधनाथ सिंह ने भैरव प्रसाद की पाण्डुलिपियां, कला समीक्षक व बलराज साहनी के भांजे केशव मलिक ने सत्यवती मलिक की पाण्डुलिपियां, डॉ. रामानुज अस्थाना ने प्रो. रमेशकुंतल मेघ की रचनाएं तथा परिमल प्रियदर्शी ने विजेन्द्र नारायण सिंह की पाण्डुलिपियां वा उनसे संबंधित  सामग्री कुलपति राय को सौंपी।

जनजातीय संग्रहालय का उदघाटन

      महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में मानवविज्ञान विभाग द्वारा संचालित जनजातीय संग्रहालय का उदघाटन समता भवन में कुलपति विभूति नारायण राय ने स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर किया। विदित हो कि विश्‍वविद्यालय स्थित यह संग्रहालय अपने आप में अनूठा है। संग्रहालय भारत की जन‍जातियों की संस्‍कृति पर प्रकाश डालता है। संग्रहालय में 20 से भी ज्‍यादा मध्‍य एवं उत्‍तर भारत के जनजातियों की शिकार, कृषि, वेष-भूषा, घरेलू इत्‍यादि से संबंधित सामग्रियों का संग्रह है।
उदघाटन के अवसर पर कुलपति राय ने मानवविज्ञान विभाग के शिक्षकों एवं छात्रों की प्रशंसा करते हुए कहा कि बिना किसी आर्थिक सहायता के जनजातीय सामग्रियों को एकत्रित किया। उन्‍होंने बताया कि वर्धा लगभग भारत के मध्‍य में है। यदि हम 250 कि. मी. के आसपास के अंतर को रेखांकित करते है तो भारत भी लगभग 30 प्रतिशत आबादी इसी क्षेत्र में निवास करती है।
संग्रहालय के अनूठेपण के बारे में जनजातीय संग्रहालय के प्रभारी डॉ. वीरेन्‍द्र प्रताप यादव ने बताया कि वर्तमान समय में भारत में अनुसूचित जनजातियों की आबादी लगभग साढ़े आठ करोड़ है। जिसमें से आधी से ज्‍यादा जनजातीय जनसंख्‍या मध्‍य भारत में निवास करती है। यह हमारी खुशकिस्‍मती मे है कि हमारा विश्‍वविद्यालय मध्‍य भारत में है और इसके साथ यह हमारी जिम्‍मेदारी भी है कि मध्‍य भारत में निवास करने वाली जनजातियों की बहुमूल्‍य एवं अद्वितीय संस्‍कृति का हम संरक्षण करें तथा इसका ज्ञान छात्रों, अनुसंधानकर्ताओं तथा आम जनता तक बढ़ाये।
     मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक ने बताया कि संग्रहालय में प्रदर्शित सभी सामग्रियों को मानवविज्ञान विभाग के छात्रों तथा शोधार्थियों द्वारा क्षेत्र कार्य के दौरान संग्रहित किया गया है। क्षेत्रकार्य मानवविज्ञान के पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्‍सा है।
     उदघाटन समारोह में कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे, कुलानुशासक प्रो. सूरज पालीवाल, आवासीय लेखक ऋतुराज, दूधनाथ सिंह तथा विनोद कुमार शुक्‍ल, सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. निर्मला जैन, प्रो. मनोजकुमार, प्रो. के. के. सिंह, प्रो. बी. एम. मुखर्जी, प्रो. अनिल के. राय, प्रो. देवराज, डॉ. नृपेन्‍द्र प्रसाद मोदी, विशेष कर्तव्‍य अधिकारी नरेंद्र सिंह, डॉ. राजीव रंजन राय, अनुसंधान अधिकारी आशुतोष कुमार एवं डॉ. परिमल प्रियदर्शी, डॉ. वीर पाल सिंह यादव, डॉ. राम प्रकाश यादव, बी. एस. मिरगे, राजेश लेहकपुरे सहित के छात्र एवं कर्मचारी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।