रविवार, 28 अप्रैल 2013


अब विष्‍णु प्रभाकर का भी घर है इस संग्रहालय में: प्रो.ए.अरविंदाक्षन

हिंदी विवि में विष्‍णु प्रभाकर की पुत्री अनीता ने किया विष्‍णु प्रभाकर मार्ग का उदघाटन

अवारा मसीहा’, सत्‍ता के आर-पार तथा अर्द्धनारीश्‍वर जैसी अनमोल कृति रचनेवाले हिंदी के मूर्धन्‍य साहित्‍यकार विष्‍णु प्रभाकर के नाम पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में समता भवन व महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन केंद्रीय पुस्‍तकालय के समीप नवनिर्मित अकादमिक भवन को जोड़ने वाली सड़क का नामकरण विष्‍णु प्रभाकर मार्ग किया गया है। आज शुक्रवार को विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन, कुलसचिव डॉ.के.जी.खामरे, राइटर-इन-रेजिडेंस प्रो.दूधनाथ सिंह, ऋतुराज सहित कई प्रमुख हस्तियों की मौजूदगी में एक गरिमामय कार्यक्रम के दौरान विष्‍णु प्रभाकर की पुत्री-अनीता, अर्चना, पुत्र-अतुल कुमार, अमित कुमार ने विष्‍णु प्रभाकर मार्ग का उद्घाटन किया।
    
विष्‍णु प्रभाकर के परिवार जनों ने उनकी अप्रकाशित डायरी, पांडुलिपियां, निजी उपयोग की वस्‍तुएं, अनमोल पत्र आदि वस्‍तुएं विश्‍वविद्यालय के स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय को सौंपी। इस अवसर पर संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन ने कहा कि यह संग्रहालय अब विष्‍णु प्रभाकर का भी घर हो गया है। इस संग्रहालय में दुर्लभ पांडुलिपियां, अनमोल पत्र व विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं के प्रवेशांक हैं प्रो.रंजना अरगडे ने शमशेर से जुड़ी सामग्री तथा राजलक्ष्‍मी वर्मा ने राम कुमार वर्मा के साहित्‍य-पांडुलिपि सहित जीवन से जुड़ी वस्‍तुएं प्रदान की हैं और इस कड़ी में विष्‍णु प्रभाकर जी के परिवार से उनके द्वारा लिखी गई अप्रकाशित डायरी सहित अन्‍य सामग्रियां प्राप्‍त हुई हैं। यह संग्रहालय के सराहनीय नए पड़ाव का एक और कदम है। मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि इस सामग्री का उपयोग शोधार्थी करेंगे और भावी पीढ़ी, ऐसे महत्‍वपूर्ण रचनाकार को आत्‍मसात कर सकेंगे।

     बतौर मुख्‍य अतिथि प्रो.दूधनाथ सिंह ने कहा कि विष्‍णु जी के प्रारंभिक त्रासद जीवन का प्रभाव उनके लेखन में देखने को मिलता है। उनकी जीवन-यात्रा में अंतरतम की गहराई तक छू जाने वाली सहज सादगी और आस्‍था ने मुझे चकित और मुग्‍ध किया। उन्‍होंने कहा कि वैचारिक दृष्टि से विष्‍णु प्रभाकर पवित्रतावादी थे। विष्‍णु जी की अवारा मसीहा तथा पांडेय बेचन शर्मा उग्र की अपनी खबर अन्‍यतम कृतियां हैं।  
    
वक्‍ता के रूप में साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो.सूरज पालीवाल ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर अपने समय व समाज के दु:ख व चिंताओं को हमारे समक्ष रखने के लिए आक्रोश से नहीं भरते थे अपितु शालीनता के साथ उत्‍तर देते थे। उनके साहित्‍य को पढ़ने से ऐसा लगता है कि वे सत्‍य को पाने के लिए गहरे में उतरते हैं। शरतचंद्र पर जो आरोप लगे, उसे प्रमाणिकता के साथ उन्‍होंने खारिज किया। उन्‍होंने कहा कि विष्‍णु जी न केवल बड़े लेखक हैं बल्कि बड़े आदमी भी थे। 
कार्यक्रम में साहित्‍य विद्यापीठ के विभागाध्‍यक्ष प्रो.के.के.सिंह ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर सन् 1930 के दशक से लिखना शुरू करते हैं और उनकी रचनात्‍मकता का स्‍त्रोत कभी सूखता नहीं है। उनकी रचना अवारा मसीहा को क्‍लासिक का दर्जा मिल चुका है। गांधीवादी मूल्‍यों में आस्‍था रखने वाले आर्यसमाजी विष्‍णु प्रभाकर ने बंगला साहित्‍य सीखकर शरतचंद्र पर लिखा। तांगेवाला कहानी का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि विष्‍णु जी मानवीय संवेदना को उकेरते हैं। 1940 के दशक में दिल्‍ली में हुए सांप्रदायिक दंगे के बीच बीमार बच्‍चे की दवा के लिए पैसा कमाने के लिए तांगेवाला तांगा दौड़ाता है। विष्‍णु प्रभाकर पर एक बड़ी संगोष्‍ठी का आयोजन किए जाने की जरूरत है ताकि उनपर नए तरीके से काम हो सके।
स्‍त्री अध्‍ययन के विभागाध्‍यक्ष प्रो.शंभु गुप्‍त ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर हिंदी के गिने-चुने लेखकों में हैं जो संयुक्‍त परिवार में विश्‍वास करते थे। आज हमारे हिंदी साहित्‍य जगत में पारिवारिकता की अवधारणा धीरे-धीरे लुप्‍त होती जा रही है। साहित्‍य रचने में राहुल सांकृत्‍यायन, रामविलास शर्मा के बाद विष्‍णु प्रभाकर का ही नाम आता है। लेकिन हिंदी आलोचना की एक अजीब सी स्थिति है कि विष्‍णु जी मुख्‍यधारा में आने से रह गए। उनके साहित्‍य पर सर्वसमावेशी तरीके से शोध किए जाने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा कि विष्‍णु जी ने जीवन में नैतिकता का ध्‍यान रखा और शरतचंद्र को विषय बनाया। स्‍त्री अस्मिता, स्‍त्री चेतना और उसका अस्तित्‍व शरतचंद्र के साहित्‍य का केंद्रीय तत्‍व है।
विष्‍णु प्रभाकर के साथ बिताए पलों को साझा करते हुए डॉ.ओ.पी.मिश्रा ने कहा कि परिवर्तन ही उनका लक्ष्‍य था। उनका साहित्‍य बिना आक्रोश के प्रतिरोधी चेतना को जगाती है। भारतीय भाषाओं से उनका गहरा लगाव था लेकिन वे हिंदी के हिमायती थे। सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता व संग्रहालय के प्रभारी प्रो.सुरेश शर्मा ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य में कहा कि विष्‍णु प्रभाकर ने विपुल साहित्‍य रचा है। उन्‍होंने 8 उपन्‍यास, 35 कहानी-संग्रह, 3 लघुकथा संग्रह, 14 नाटक, 65 संपादित पुस्‍तकें सहित कई विधाओें में लेखन किया है। हमें संग्रहालय में उनकी पांडुलिपियां सहित हजारी प्रसाद द्विवेदी, दिनकर, अश्‍क, राजेन्‍द्र प्रसाद आदि के पत्र प्राप्‍त हुए हैं, जो विष्‍णु जी को लिखे गए हैं।  
इस दौरान विष्‍णु प्रभाकर की सुपुत्री अनीता ने कविता का पाठ किया। पुत्र अतुल कुमार ने पिता के संस्‍मरणों को साझा करते हुए कहा कि उनका परिवार विशाल है, उनके चाहनेवालों को देखकर ऐसा लगता है। हम चाहते हैं कि परिवार में संबंध बना रहे और वार्तालाप भी जारी रहे। दूसरे पुत्र अमित ने कहा कि पिता जी सदैव भागो मत, दौड़ो वक्‍तव्‍य को चरितार्थ करते हुए जीवन के संघर्षों से कभी भागे नहीं।
वैचारिक कार्यक्रम की शुरूआत विष्‍णु प्रभाकर की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण कर की गई। संचालन साहित्‍य विद्यापीठ की एसोशिएट प्रोफेसर डॉ.प्रीति सागर ने किया। आभार व्‍यक्‍त करते हुए प्रो.रामशरण जोशी ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर सहज, सरल व मानवीय थे। वह अपने लेखन में मानवीय संवेदना को सहजता के साथ रखते थे। उनपर गांधीवाद, मानवतावाद और एक सीमा तक मार्क्‍सवाद का भी प्रभाव था। वह हिंदी साहित्‍य में अजातशत्रु के रूप में जाने जाएंगे। इस अवसर पर अशोक मिश्र, प्रकाश चन्‍द्रायन, अमित विश्‍वास, राजेश्‍वर सिंह, इंजीनियर अवस्‍थी सहित बड़ी संख्‍या में अध्‍यापक, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।


शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013


शैक्ष्‍ाणिक आदान-प्रदान से भारत-चीन संबंध होंगे मजबूत- कुलपति राय

शैक्षणिक आदान-प्रदान से भारत और चीन के संबंधों में और मजबूती
आएगी। उक्‍त वक्‍तव्‍य महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने दिये। वे विश्‍वविद्यालय में चीन से हिंदी सीखने आए छात्रों के विदाई समारोह में बतौर अध्‍यक्ष बोल रहे थे।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे, वित्‍ताधिकारी संजय गवई, भाषा विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल मंचासीन थे। विश्‍वविद्यालय के भाषा विद्यापीठ के सभागार में चीन के छात्रों को बुधवार को एक समारोह में विदाई दी गयी। विद्यार्थियों ने ‘अंतरराष्‍ट्रीय छात्रों के लिए हिंदी में डिप्‍लोमा पाठ्यक्रम’ में प्रवेश लिया था। चे विद्यार्थी जियांग फारेन स्‍टडीज यूनिवर्सिटी और पेचिंग फॉरेन स्‍टडीज यूनिवर्सिटी, चीन से विश्‍वविद्यालय में आए थे। इस अवसर पर सभी छात्रों को कुलपति राय द्वारा प्रमाण पत्र एवं वित्‍ताधिकारी संजय गवई द्वारा स्‍मृतिचिन्‍ह प्रदान किये गये।
प्रारंभ में भाषा विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल ने प्रास्‍ताविक वक्‍तव्‍य दिया। उन्‍होंने विदेशी छात्रों के लिए चलाए जा रहे विभिन्‍न पाठ्यक्रमों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन स्‍पेनिश भाषा के सहायक प्रोफेसर रवि कुमार ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. उमाशंकर उपाध्‍याय ने किया। इस दौरान उपकुलसचिव कादर नवाज खान, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज, जगदीश दॉंगी, डॉ. डी. एन. प्रसाद, डॉ. अनिल कुमार पाण्‍डेय, रयाज हसन, धनजी प्रसाद आदि प्रमुखता से उपस्थित थे।
 

सोमवार, 22 अप्रैल 2013


अन्‍वेषी व्‍यक्तित्‍व के धनी थे राहुल  : विभूति नारायण राय

महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन केंद्रीय पुस्‍तकालय में राहुल सांकृत्‍यायन के जन्‍म दिवस पर हुआ विमर्श

राहुल सांकृत्‍यायन के जन्‍मदिवस पर महात्मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय विश्वविद्यालय के महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन केंद्रीय पुस्‍तकालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि राहुल सांकृत्‍यायन अन्‍वेषी प्रकृति के थे, उन्‍होंने हजारों विलुप्‍तप्राय एवं दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह कर भारतीय ज्ञान चिंतन को समृद्धि प्रदान की। राहुल जी ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ झंडा उठाया था। वोल्‍गा से गंगा तक’, सतमी के बच्‍चे’, बहुरंगी मधुपुरी’, कनैला की कथा जैसी कहानी संग्रह सहित कई विधाओं पर लिखने वाले राहुल सांकृत्‍यायन के कार्यों और विचारों की आज भी प्रासंगिकता है और प्रत्येक काल खण्ड में यह प्रासंगिकता बनी रहेगी। उन्होंने जिस बेहतर दुनियासमाज और मनुष्य का सपना देखा था। उस सपने को सार्थक करने की दिशा में हमें पहल करने की जरूरत है। जब इस केंद्रीय पुस्‍तकालय का नामकरण किया जाना था तो हम सभी को राहुल सांकृत्यायन के नाम पर रखना ही उचित प्रतीत हुआ। जैसा कि दूधनाथ सिंह जी ने कहा कि राहुल जी इलाहाबाद में भी रहे और बहुत सारी सामग्री वहां मौजूद हैं, मैं विश्‍वविद्यालय के इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी प्रो.संतोष भदौरिया से अनुरोध करूँगा कि वे उन सामग्रियों को स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय को उपलब्‍ध कराने की कोशिश करें।
विश्‍वविद्यालय के राइटर-इन-रेजिडेंस प्रो.दूधनाथ सिंह ने कहा कि राहुल जी मार्क्‍सवादी दार्शनिक, बौद्ध दार्शनिक के रूप में वैचारिक यायावर की तरह लिखते रहे। वे मूलतः लोक के दूत थे। उन्हें भोजपुरी और लोक भाषाओं से लगाव था। वे दुनिया की 36 भाषाओं के जानकार थे। वे लोकभाषा व बोलियों की स्वतंत्रता के पक्ष में थे। अनेकानेक प्रसंगों को उद्धृत करते हुए दूधनाथ सिंह ने राहुल सांकृत्‍यायन के निजी जीवन से लेकर यात्रा-प्रसंगोंराजनीतिक-दृष्टि से लेकर लोक-पीड़ा व साहित्य-समझ से लेकर सांस्कृतिक विस्तार तक पर व्यापक वक्तव्य देते हुए कहा कि उनके रचनात्‍मक व वैचारिक योगदान को न सिर्फ याद करने की जरूरत है बल्कि मिशनरी भाव से काम करने की जरूरत है।
राइटर-इन-रेजिडेंस ऋतुराज ने कहा कि समाजसाहित्य व संस्कृति की बेहतरी के लिए राहुल जी द्वारा किए गए कार्यों में उनका वैशिष्ट्य दिखाई देता है। महाचेता राहुल जी की घुमक्कड़ी वृत्ति में उन्हें दुनिया की अनेक भाषाओंबोलियोंसंस्कृतियों और समाज को नजदीक से देखने का मौका दिया। इस मौके ने राहुल जी के व्यक्तित्व को रूपांतरित करने का कार्य किया है। अनेक देशों से दुर्लभ पाण्डुलिपियों और ज्ञान-संपदा को भारत ले आने का राहुल जी का काम उनकी क्षमता को दर्शाता है।
संचालन पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ.मैत्रेयी घोष ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ.के.जी.खामरे, वित्‍ताधिकारी संजय भास्‍कर गवई, प्रो.रामशरण जोशी, प्रो.अनिल के.राय अंकित, प्रो.सूरज पालीवाल, प्रो.रामवीर सिंह, प्रो.के.के.सिंह, प्रो. हनुमान शुक्‍ला, प्रो.शुभू गुप्‍त, प्रो.देवराज, अशोक मिश्र, अमित विश्‍वास, डॉ.मिथिलेश, आनन्‍द मण्डित मलयज, नटराज वर्मा, चित्रलेखा अंशु सहित बड़ी संख्‍या में अध्‍यापक, कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

रविवार, 21 अप्रैल 2013



 सृजन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया -त्रिपुरारी शरण

दूरदर्शन के महानिदेशक ने बताए फिल्‍म बनाने के तौर-तरीके

सृजन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया होती है। यदि आप सच्‍चे सृजनधर्मी है तो आपको मानसिक और शारीरिक रूप से बलवान होना पड़ता है। मेरी‍ फिल्‍म वो सुबह किधर निकल गयी  जीवन, आकांक्षा और महत्‍वाकांक्षा और सत्‍य-असत्‍य के बीच कितना तनाव होता है इसे पकड़ने की कोशिश करती है। इस आशय के विचार दूरदर्शन के महानिदेशक, भारतीय फिल्‍म एवं टेलीविजन संस्‍थान, एफटीआईआई पुणे के पूर्व निदेशक त्रिपुरारी शरण ने व्‍यक्‍त किये।
वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में भारतीय सिनेमा के सौ साल के उपलक्ष्‍य में आयोजित विशेष व्‍याख्‍यान में रविवार को बतौर मुख्‍य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। इस अवसर पर त्रिपुरारी शरण द्वारा निर्देशित फिल्‍म वो सुबह किधर निकल गयी का प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के उपरांत प्रतिभागियों से रूबरू होते हुए उन्‍होंने फिल्‍म बनाने की तक‍नीक और खुबियों के बारे में अपने विचार रखे। प्रतिभागियों से फिल्‍म के बारे में पूछे गये सवाल का उन्‍होंने समाधान किया। उन्‍होंने कहा कि यह फिल्‍म दुनिया के 12 देशों में प्रदर्शित की गयी। इस फिल्‍म के में जीवन के संघर्ष को दर्शाया गया है। इसकी पटकथा वास्‍तविकता पर आधारित है।
अध्‍यक्षीय उदबोधन में कुलपति राय ने कहा कि विश्‍वविद्यालय के नाट्यकला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग द्वारा पहली बार इस प्रकार के पाठ्यक्रम का आयोजन हमारे लिए एक विलक्षण अनुभव सा है। जितनी कल्‍पना नहीं की गयी थी उससे अधिक रिस्‍पांस इसको भारत को कोने-कोने से मिला। प्रतिभागियों की उत्‍सुकता और उत्‍साह को देखते हुए विश्‍वविद्यालय भविष्‍य में इस प्रकार के आयोजनों को व्‍यापक स्‍तर पर सफल कर सकेगा। उन्‍होंने नाट्यकला विभाग के अध्‍यक्ष प्रो.सुरेश शर्मा समेत सभी अध्‍यापकों और आयोजन समिति की प्रशंसा की। प्रारंभ में सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. सुरेश शर्मा ने त्रिपुरारी शरण का परिचय दिया। कुलपति राय ने स्‍मृतिचिन्‍ह देकर त्रिपुरारी शरण का स्‍वागत किया। रविवार की शाम त्रिपुरारी शरण की ही और एक फिल्‍म ‘जब दिन चले रात चले का प्रदर्शन हबीब तनवीर सभागार में किया गया। 

बुधवार, 17 अप्रैल 2013


रोजगार परक हो अनुवाद –कुलपति विभूति नारायण राय

हिंदी विश्‍वविद्यालय में भारतीय भाषाएँ और अनुवाद प्रोद्योगिकी पर राष्‍ट्रीय कार्यशाला का उदघाटन



महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ द्वारा भारतीय भाषाएँ और अनुवाद प्रोद्योगिकी पर आयोजित तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला के उदघाटन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि हाल के दिनों में अनुवाद एक व्‍यापार की तरह विकसित हो रहा है। इसे रोजगार परक बनाया जाना चाहिए ताकि इस चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में छात्र रोजगार पा सकें।
विश्‍वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में बुधवार को इस तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला का उदघाटन हुआ। इस अवसर पर विश्‍वविद्यालय के अतिथि लेखक दूधनाथ सिंह, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ प्रो. ओम विकास, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज, संयोजक डॉ. अन्‍नपूर्णा सी मंचासीन थे। कुलपति राय ने कहा की पूरे देश में हमारे विश्‍वविद्यालय में अनुवाद का एक मात्र विभाग है। हमारे पास भाषा भी है। यदि हमें मशीन का सहयोग मिले तो हम बेहतर मशीनी अनुवाद कर सकते हैं और इससे हमारे छात्रों को रोजगार दिला सकते है। अतिथि लेखक दूधनाथ सिंह का मानना था कि अनुवाद के लिए पारिभाषिक शब्‍दावली का ज्ञान होना एक अनिवार्य शर्त है। साहित्‍य के अनुवाद का जिक्र कर रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने कहा कि मूल रचना से भी अनुवाद में गहरायी नजर आती है। प्रो. देवराज ने अपने बीज वक्‍तव्‍य में अनुवाद की महत्‍ता को रेखांकित करते हुए प्रौद्योगिकी के माध्‍यम से मशीनी अनुवाद के विकास की बात कहीं। कार्यशाला की भूमिका एवं विषय प्रवर्तन डॉ. अन्‍नपूर्णा सी ने किया। प्रारंभ में अतिथियों का स्‍वागत पुष्‍पगुच्‍छ और स्‍मृतिचिन्‍ह प्रदान कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के सहायक प्रोफेसर डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन डॉ. रामप्रकाश यादव ने प्रस्‍तुत किया। समारोह में भाषा विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. हमुमान प्रसाद शुक्‍ल, समाज विज्ञान और मानविकी विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. अनिल के राय अंकित, सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. सुरेश शर्मा, साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. के. के. सिंह, सहायक प्रोफेसर राजीव रंजन राय, हरप्रीत कौर, शैलेष कदम मरजी समेत विषय विशेषज्ञ, देशभर से आए प्रतिनिधि, विश्‍वविद्यालय के शोधार्थी तथा छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।  

सोमवार, 15 अप्रैल 2013


पुरस्‍कार की राजनी‍ति से कविता के जनतंत्र को खतरा : प्रो.निर्मला जैन

हिंदी विवि के इलाहाबाद केंद्र में कविता का जनतंत्र और जनतंत्र की कविता पर विद्वानों ने किया विमर्श

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा कविता का जनतंत्र और जनतंत्र की कविता विषय पर गोष्‍ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए हिंदी की सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो.निर्मला जैन ने कहा कि पुरस्‍कार की राजनी‍ति से कविता के जनतंत्र को खतरा है। कविता मनुष्‍य बनाने का काम करती है। तुलसीदास बड़े कवि इसलिए हैं कि वे पंडितों, चौक-चौराहों और विद्वानों के बीच भी पढ़े जाते हैं। कविता में लय की उपस्थिति अनिवार्य है और इसकी लय गद्य से बिल्‍कुल अलग होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि कविता की भाषा जितने अधिक लोगों की समझ में आएगी उसमें लोकतंत्र उतना ही ज्‍यादा होगा। जिस कविता में समाज की चिंता होगी, सही बातों को कहने की क्षमता होगी, वही जनतंत्र की कविता होगी। हमें यह कहने में गुरेज नहीं है कि जहां देश का जनतंत्र ही खतरे में है वहां कविता के जनतंत्र की बात नहीं की जा सकती है।    
      बतौर मुख्‍य अतिथि कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि उर्दू का कवि मुशायरों में जाता है जबकि हिंदी का बड़े से बड़ा कवि भी मंच पर जाने से कतराता है। कविता का अपना जनतंत्र होता है। ऐसा नहीं है कि बाहरी दुनिया का उसपर कोई असर नहीं होता है। उन्‍होंने कहा कि जनतंत्र का साहित्‍य अपने विपरीत बातों को भी बर्दाश्‍त करने का काम करता है। जनतंत्र का साहित्‍य उदारता और सहिष्‍णुता का पक्ष रखता है। अगर साहित्‍य में असहमति को जगह नहीं है तो उसे जनतंत्र का साहित्‍य नहीं कहा जा सकता है। साहित्‍य को जनपक्ष और जनतंत्र का साहित्‍य बनाने के लिए साहित्‍यकारों को साहस के साथ जनता का साथ देना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि अच्‍छी कविता वह है जो हमें मनुष्‍य बनाए, जिसमें जनपक्षधरता, उदारता व मानवीय गुण समाहित हो। 
      वरिष्‍ठ साहित्‍यकार प्रो.विजय बहादुर सिंह ने कहा कि साहित्‍य या कविता का जनतंत्र अनुभव का जनतंत्र है। इसे किसी खांचे में बांधने से जनतंत्र का स्‍वरूप समाप्‍त हो जाएगा। इसे पाठकों की समझ पर छोड़ दिया जाना चाहिए। कविता आधुनिकता या प्रगतिशीलता का ठेका नहीं लेती है बल्कि आम जन की अनुभूतियों और जीवन से प्रेरित होती है। जनता को, पाठक को मौका दिया जाना चाहिए कि वह अच्‍छी कविता व अच्‍छी साहित्‍य को चुन सकें।
      पुस्‍तकवार्ता के संपादक भारत भारद्वाज ने कहा कि मनुष्‍य की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। आज खराब कविता ने अच्‍छी कविता को ढ़क दिया है। कविता मनुष्‍य को मनुष्‍य बनाने का काम भलीभांति करती है तभी वही जनतंत्र की कविता है।
      साहित्‍यकार उदभ्रांत ने कहा कि कविता में जीवन संघर्ष नहीं है तो वह जनतंत्र की कविता नहीं कही जा सकती है। कविता का सही रास्‍ता जन-जीवन से जुड़ा होना चाहिए। कविता में छंद को छोड़ना बड़ी दुर्घटना की तरह है। यह कमी पिछले एक दशक से म‍हसूस की जा रही है। अगर सामान्‍य जन को जोड़ना है तो लय को पहचानना होगा। कविता को यहां तक पहुंचाने में आलोचकों की भी महती भूमिका है। कविता का सही अर्थ सामान्‍य जनजीवन और जनतंत्र का भाव है। उन्‍होंने कविता के जनतंत्र पर सवाल उठाया और जनतंत्र की कविता को परिभाषित करने की कोशिश की।
      इस अवसर पर हरिश्‍चन्‍द्र अग्रवाल की ताजा पुस्‍तक सवाल यह है का विमोचन मंचस्‍थ अतिथियों द्वारा किया गया। गोष्‍ठी का संचालन एवं संयोजन इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी प्रो.संतोष भदौरिया ने किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ.मनोज राय, राकेश श्रीमाल, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, अमित विश्‍वास, विनय भूषण, हरिश्‍चन्‍द्र अग्रवाल, मीना राय, सुधीर सिंह, हिंमाशु रंजन, रमेश कुमार, अनुपम आनन्‍द, अविनाश मिश्रा, मीना राय, के.के. पांडेय, अशोक सिद्धार्थ, सुरेद्र राही, श्रीप्रकाश मिश्र, हरिश्‍चन्‍द्र पांडेय, असरार गांधी, फखरूल करीम, सालिहा जर्रीन, गुफरान अहमद खां, मनोज सिंह, असरफ अली बेग सहित बडी संख्‍या में साहित्‍य प्रेमी उपस्थित रहे।

रविवार, 14 अप्रैल 2013


प्रो. प्रदीप को डा. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान

हिंदी आलोचना में जिस तरह के साध्य की जरूरत है वह हिंदी में विरल होती जा रही है : नामवर सिंह

जोकहरा स्थित श्री रामानन्‍द सरस्‍वती पुस्‍तकालय में गोष्‍ठी : इतिहास और आलोचना विषय पर आयोजित एक भव्‍य समारोह में हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो.नामवर सिंह ने प्रो.प्रदीप सक्‍सेना को शॉल, प्रशस्ति पत्र, नगद राशि प्रदान कर वर्ष 2012 का डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्‍मान से सम्‍मानित किया। श्री रामानन्‍द सरस्‍वती पुस्‍तकालय, जोकहरा, केदार शोध पीठ (न्‍यास), बॉंदा, डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्‍मान आयोजन समिति की ओर से प्रदान किए जाने वाले सम्‍मान समारोह के दौरान महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार प्रो.निर्मला जैन, प्रो.चौथीराम यादव, भारत भारद्वाज, दिनेश कुशवाह, प्रदीप सक्‍सेना, रमेश कुमार मंचस्‍थ थे।

      अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि हिंदी आलोचना में जिस तरह के साध्‍य की जरूरत है वह हिंदी में विरल होती जा रही है। रामविलास शर्मा ने जो श्रम और साधना की हिंदी आलोचना के लिए, उस परंपरा में एक मात्र हिंदी आलोचक प्रदीप सक्‍सेना दिखाई देते हैं। प्रदीप सक्‍सेना ने अपने इतिहास लेखन और आलोचना का कार्य रामविलास शर्मा की परंपरा का निर्वहन करते हुए किया है, वह इस सम्‍मान के हकदार हैं।    
      स्‍वागत वक्‍तव्‍य में विभूति नारायण राय ने कहा कि प्रदीप सक्‍सेना आलोचना के महत्‍वपूर्ण हस्‍ताक्षर हैं। अठारह सौ सत्‍तावन और भारतीय नवजागरण में इन्‍होंने मार्क्‍सवादी इतिहास-विज्ञान की तत्‍वमीमांसा को भारतीय परिवेश में ज्ञानमीमांसा में परिवर्तित कर उसका सार्थक उपयोग किया है। उन्‍होंने कहा कि इस वर्ष डॉ.रामविलास शर्मा जी का जन्‍म शताब्‍दी वर्ष है। विश्‍वविद्यालय में उनके नाम पर बने सड़क व साहित्‍य विद्यापीठ में लगाई गई प्रतिमा का अनावरण उनके सुपुत्र द्वारा किया गया। इस वर्ष प्रदीप सक्‍सेना जैसे मार्क्‍सवादी आलोचक को यह सम्‍मान दिया गया, इसके लिए उन्‍हें बधाई।
      सुप्रसिद्ध साहि‍त्‍यकार प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि रामविलास जी ने हिंदी इतिहास लेखन की परंपरा का नए सिरे से मूल्‍यांकन किया है। उनके इतिहास लेखन में जो अंतर्विरोध हैं, उस पर बातचीत होनी चाहिए, किंतु इस बातचीत में हमें यह सावधानी बरतनी होगी कि हिंदी साहित्‍य में जो उन्‍होंने नई आलोचना दृष्टि दी है इस ओर भी हमें ध्‍यान देने की जरूरत है। वरिष्‍ठ साहित्‍यकार चौथीराम यादव ने कहा कि रामविलास शर्मा ने भाषा वैज्ञानिकों के परंपरागत भाषा संबंधी चिंतन से अलग हटकर क्षेत्रीय भाषा के महत्‍व को स्‍थापित किया। रामविलास जी के लेखन में हाशिए का समाज व चिंतन अनुपस्थित रहा है, इस पर पुर्नमूल्‍यांकन किए जाने की जरूरत है।  
      अलीगढ़ विश्‍वविद्यालय से आए वक्‍ता रमेश कुमार ने कहा कि समकालीन हिंदी आलोचना में प्रदीप सक्‍सेना, अपनी निर्भ्रांत इतिहास चेतना और आलोचकीय विवेक से समय, समाज और संस्‍कृति के जन-विरोधी चिंतन का प्रतिपक्ष रचते हैं। प्रतिपक्ष की इस सर्जना में जो सौंदर्यशास्‍त्र निर्मित होता है, वह अपनी प्रकृति में बहुआयामी है।
      इस दौरान प्रदीप सक्‍सेना ने कहा कि स्‍वतंत्रता के समय राष्‍ट्रीय आंदोलन का जो स्‍वरूप था उसकी एक झलक यहां दिखाई पड़ती है। यह पुस्‍तकालय सांस्‍कृतिक नवजागरण का एक महत्‍वपूर्ण केंद्र बनता जा रहा है। आज पूरी दुनिया एक ध्रुवीय हो गई है। अमेरिका को दुनिया में जहां भी लाभ दिखता है, वहां वह सभी तरह की नीतियों में हस्तक्षेप कर अपनी बात मनवाता है। पहले हम साम्राज्‍यवादी ताकतों के सामने लड़ने को तत्‍पर रहते थे पर आज नव साम्राज्‍यवाद में कुछ छिपी ताकतें हमारे दिलों पर राज करती हैं। हरेक गांव में एक ऐसा ही सांस्‍कृ‍तिक केंद्र हो ताकि नव औपनिवेशिक ताकतों से मुकाबला किया जा सके।
      साहित्‍यकार भारत भारद्वाज ने कहा कि राम विलास जी का मूल्‍यांकन होना बाकी है, पुर्नमूल्‍यांकन होना चाहिए। आलोचना साहित्‍य का विवेक है, आलोचक को विवेक का सम्‍मान करना चाहिए। रामविलास सम्‍मान प्रदीप जी को मिला है, आशा है कि आपनी आलोचकीय दृष्टि में साहित्‍य के विवेक को बनाए रखेंगे।
      महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी व आयोजक प्रो.संतोष भदौरिया ने प्रदीप सक्‍सेना के व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनके लेखन में विचार की प्रधानता है जो इनकी आलोचनात्‍मक सर्जना में अंतर्धारा की तरह प्रवहमान है।
      डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्‍मान के संयोजक नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक ने कहा कि यह सम्‍मान हिंदी के ऐसे ओलाचक को उत्‍साहित करने के लिए दिया जाता है, जिसकी आलोचना सामर्थ्‍य एक तरफ विभिन्‍न प्रकाशनों से पहचान में आयी है और दूसरी तरफ उसके पास अभी इतना समय बचा है जिससे वह पूरी तरह से विकसित कर सके।
      प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. के महासचिव संजय श्रीवास्‍तव ने संचालन किया और श्रीप्रकाश मिश्र ने आभार व्‍यक्‍त किया। इस अवसर पर हिना देसाई, सुधीर शर्मा, कांति लाल शर्मा, राकेश श्रीमाल, प्रो. बद्री प्रसाद, रामशकल पटेल, हरि मंदर पांडेय, डॉ. बी.के.पांडेय, अमित विश्‍वास, विनय भूषण, मनोज सिंह, डॉ.गुफरान अहमद खान, उदभ्रांत, हीरा लाल, ए.के.सिंह सहित बड़ी संख्‍या में पुस्‍तकालय के विद्यार्थी व हिंदी के सुधी जन उपस्थित रहे।

भारतरत्‍न डॉ.आंबेडकर जयंती पर विश्‍वविद्यालय में समता मैराथन

चीनी छात्र ने जीता पहला पुरस्‍कार

संविधान निर्माता भारतरत्‍न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की 122वीं जयंती के उपलक्ष्‍य में महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में समता मैराथन का आयोजन कर उन्‍हें अनोखे तरीके से अभिवादन किया गया। विवि के नागार्जुन सराय से इस मैराथन का प्रारंभ कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे द्वारा पंचशील ध्‍वज फहराकर और उपकुलसचिव पी. एस. सिंह द्वारा फीता काटकर किया गया। इसमें देश विदेश के छात्रों समेत अध्‍यापक अधिकारी तथा कर्मिंयों ने बढ-चढकर हिस्‍सा लिया।
इस प्रतियोगिता का पहला पुरस्‍कार पुरूष वर्ग में चीन का छात्र देंग यूनपेंग मंगल को] महिला वर्ग में आरती कुमारी को तथा बच्‍चों की श्रेणी में दीपक चौधरी को कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे तथा डॉ. एम. एल. कासारे द्वारा प्रदान किया गया। पुरस्‍कार स्‍वरूप डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा लिखित और उनपर लिखे गये ग्रंथ प्रदान किये गये। द्वितीय और तृतीय स्‍थान प्राप्‍त करने वाले अमित कुमार अजय डवरे, शिल्‍ला भगत, प्रिंस सिंह और अवनीश सिंह को भी पुरस्‍कृत किया गया। प्रारंभ में कुलसचिव डॉ. खामरे ने डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण कर तथा उपस्थितों ने पुष्‍प अर्पण कर उन्‍हें अभिवादन किया। इसके उपरांत उपस्थितों को संबोधित करते हुए डॉ. कासारे ने कहा कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की समता मूलक समाज की अवधारणा को साकार रूप प्रदान करने के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए और उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि समता मैराथन के आयोजन से हमें समाज में इस अवधारणा का विकास करने के लिए बल मिलेगा। फैकल्‍टी एण्‍ड आफीसर्स क्‍लब द्वारा प्रात: 6.00 बजे से प्रारंभ हुए इस समारोह में अतिथि लेखक दूधनाथ सिंह, ऋतुराज और विनोद कुमार शुक्‍ल समेत विशेष कर्तव्‍य अधिकारी नरेन्‍द्र सिंह, प्रो.के. के. सिंह, अमरेन्‍द्र कुमार शर्मा, राजेश्‍वर सिंह, डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. रामानुज अस्‍थाना, डॉ. डी. एन. प्रसाद, डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, राकेश मिश्र, राजेन्‍द्र घोडमारे डॉ. तायडे, बी. एस. मिरगे, संदीप वर्मा सहित छात्र, सुरक्षा कर्मी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे। 

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013


परिवर्तन की चेतना कभी मात नहीं खाती : रामजी राय

दोस्‍त से ही बहस हो सकती है, दुश्‍मन का तो विरोध होता है। सरकारों ने तो भगत सिंह को मारा है, मगर देश के अवाम ने उन्‍हे जिन्दा रखा है, अपने दिलों में, परिवर्तन कामी चेतना में, भगत सिंह लोगों की जरूरत हैं और हमेशा रहेगा। आज भगत सिंह को याद करते हुए मुझे पाश, शांवेज और मुक्तिबोध की याद आ रही है। मुक्तिबोध ने अपनी कविता में कहा था कि मैं उस किताब का अगला पन्‍ना पढ़ना चाहता हूँ। ये आज भी सच है कि परिवर्तन कामी चेतना कभी मात नहीं खाती, इंची टेप से उसे नापा नहीं जा स‍कता, आंदोलन के जितने रंग रूप आज छिटके हैं वे आशा और उम्‍मीद जगाते हैं।
उक्‍त उद्बोधन समकालीन जनमत के संपादक रामजी राय ने भगत सिंह से दोस्‍ती विषय पर आयोजित गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र, इलाहाबाद के सत्‍यप्रकाश मिश्र सभागार में व्‍यक्‍त किए। गोष्‍ठी के विशिष्ट अतिथि जियाउल हक ने कहा कि भगत सिंह के लेखन और उनके क्रांतिकारी व्‍यक्तित्‍व को लोगों के बीच ले जाने के लिए हमें साल के 365 दिन काम करना होगा। ईमानदारी से एक साथ आना होगा तभी समाज में अवाम के हित में कुछ किया जा सकता है। बतौर वक्‍ता सुधांशु मालवीय ने कहा कि आज दुख का अंबार है, दुख से निकलने का कोई रास्‍ता नहीं सूझता, आज क्रांति का सपना पीछे छूट रहा है। आजादी का सही इतिहास आज तक नहीं लिखा गया। भगत सिंह के चिंतन में गजब की स्‍पष्‍टता है, आंदोलन की खरी समझदारी उनमें थी, उनका चिंतन हमें शत्रु की स्‍पष्‍ट पहचान कराता है, उन्‍होंने श्रमिक जनता की आजादी से कम कुछ भी नही चाहा। दूसरे वक्ता स्‍त्री अधिकार संगठन से जुड़ी पदमा सिंह ने कहा कि भगत सिंह ने समाजवाद का, शोषण से मुक्ति का सपना देखा था। खास संदर्भों में उन्‍होंने नास्तिकता को व्‍याख्‍यायित किया, समाजवाद के सपने को जीवित रखना अब सबकी जिम्‍मेदारी है, क्रांतिकारिता जड़वत नहीं होनी चाहिए, समाजवाद की नई जमीन तैयार करने की जरूरत है। वक्‍ता के रूप में युवा कवि अंशु मालवीय ने कहा कि भगत सिंह के व्‍यक्तित्‍व का यूटोपिया मानीखेज है। अंबेडकर, गांधी और भगत सिंह के बीच के अंतरक्रिया को हमे समझना चाहिए, विद्यार्थी और राजनीति उनका महत्‍वपूर्ण लेख है। युवा सक्रियताओं की अपनी सीमा हो सकती है, किन्‍तु उसे नये तरीके से कंस्‍ट्रक्ट करने की जरूरत है। गोष्‍ठी की प्रस्‍तावना कार्यक्रम के संयोजक प्रो.संतोष भदौरिया ने रखी, अतिथियों का स्‍वागत अनिल रंजन भौमिक ने किया। गोष्‍ठी के अंत में भगत सिंह के जीवन पर आनन्‍द पटवर्धन द्वारा नि‍र्मित वृत्‍तचित्र उन दोस्‍तों की याद प्‍यारी का प्रदर्शन किया गया, जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा।
      कार्यक्रम में प्रमुख रूप से हरिश्‍चन्‍द्र अग्रवाल, मीना राय, सुधीर सिंह, झरना मालवीय, हिंमाशु रंजन, जयकृष्‍ण राय तुषार, अरविंद विन्‍दु, सुरेश कुमार शेष, रविनंदन सिंह, सीमा आजाद, विश्‍वविजय, फज़्ले हसनैन, अनुपम आनन्‍द, अविनाश मिश्रा, सुरेद्र राही, असरार गांधी, फखरूल करीम, सालिहा जर्रीन, गुफरान अहमद खां, असरफ अली बेग सहित बडी संख्‍या में साहित्‍य प्रेमी उपस्थित रहे।

कविता की हत्या


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(वीरेंद्र प्रताप यादव)



बड़ी अच्छी योजना थी
तुमने कोशिश भी की थी
कविता की हत्या करने की
घायल थी वो,
कमजोर थी वो,
काली होती जाती थी,
किन्तु कविता अभी भी जीवित थी
अमरता का वरदान था उसे

तुमने और ज्यादा चालाकी की
कविता की सज़ा निर्धारित कर दी
नजरबंद कर दिया उसे
कचहरी का सरकारी ताला लगा दिया
उसके मुँह पर
राज्य की जंजीरों को डाल दिया
उसके बदन पर

लेकिन, कविता का चेहरा बदल गया
उसके अंगों का कार्य बदल गया
कविता अब,
आंखों से बोलने लगी,
आंखों से सुनने लगी,
आँखें ही उसकी ज़ुबान बन गयी
आँखें ही उसके कान बन गए
आँखें ही उसके हाथ बन गए

तुम्हारे कई बार नष्ट करने के बाद भी
अमीबा की तरह, 
हर बार उसकी नयी आँखें निकल आती थीं 
अब उसके पूरे शरीर पर आँखें ही आँखें थीं
उसके उदर पर,
उसके कंधों पर,
उसके स्तनों पर

कविता को,
उसकी आंखों को,
अमरत्व प्राप्त हो रहा था
पेट भरने के लिए शरीर बेचने वाली वेश्याओं से
डांगर से ज्यादा संख्या में मरने वाले किसानों से
साहब के कुत्ते से रोटी खींचने वाले बेरोजगार नवजवानों से
और अब,
आँखें बारूद बनने लगी हैं