गुरुवार, 7 मार्च 2013


भाषाई संकट से जूझ रही है हिंदी पत्रकारिताः विकास मिश्र

विकास मिश्र को रवींद्र साहित्य भेंट करते जेके भारती, राजेंद्र राय और डा. कृपाशंकर चौबे।
वरिष्ठ पत्रकार तथा लोकमत समाचार के संपादक विकास मिश्र ने कहा है कि हिंदी पत्रकारिता आज भाषाई संकट से जूझ रही है। श्री मिश्र महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में पत्रकारिता के बदलते दौर विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।  उन्होंने कहा कि आज हिंदी पत्रकारिता में अंग्रेजी शब्दों के बहुतायत प्रयोग के कारण कई बार वह हिंग्लिश की पत्रकारिता प्रतीत होती है। यदि इस प्रवृत्ति को नहीं रोका गया तो इसके सांघातिक परिणाम होंगे। श्री मिश्र ने कहा कि भाषाई संकट के बावजूद पत्रकारिता में मिशन का भाव पूरी तरह लुप्त नहीं हुआ है। आज भी कई पत्रकार हैं जिन्होंने पेशे की पवित्रता पर आंच नहीं आने दी। वे न बिके न अपनी पत्रकारिता को बिकाऊ माल का प्रवक्ता होने दिया। उन्होंने कहा कि नकारात्मक प्रवृत्ति को प्रकाशित-प्रसारित करने से मीडिया को बचना होगा। महाराष्ट्र में आज कोई दल यदि बिहारियों के प्रति विद्वेष रखता है तो उसे यदि कवर करना बंद कर दिया जाए तो वह प्रवृत्ति खुद-ब-खुद कम होती जाएगी। संगोष्ठी को प्रो. सुभाष मंडल, प्रो. जेके भारती, प्रो. प्रतीक सिंह, कृष्णानंद भारती और मनीषा यादव ने भी संबोधित किया। संगोष्ठी की  अध्यक्षता करते हुए समाजवादी चिंतक राजेंद्र राय ने कहा कि यदि पत्रकारों ने अपनी कलम बेच दी तो देश के रहनुमा देश को बेच देंगे। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में विकास मिश्र से संवाद का कार्यक्रम रखा गया।  समापन वक्तव्य देते हुए महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि पत्रकारिता में घर कर गईं विकृतियों की पहचान यदि हो रही है तो यही आश्वासन भी है कि उसे दूर भी किया जा सकता है।

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