बुधवार, 28 नवंबर 2012


मेहनतकश से लगाव के बिना आंदोलन करना असंभव  : प्रदीप सक्सेना

आज पूरी दुनिया एक ध्रुवीय हो गई है। अमेरिका को दुनिया में जहां भी लाभ दिखता है, वहां वह सभी तरह की नीतियों में हस्तक्षेप कर अपनी बात मनवाता है। पहले हम साम्राज्‍यवादी ताकतों के सामने लड़ने को तत्‍पर रहते थे पर आज नव साम्राज्‍यवाद में कुछ छिपी ताकतें हमारे दिलों पर राज करती हैं। हम उनके रहन-सहन, खान-पान आदि को अपपाने के लिए लालायित रहने लगे हैं। उपभोक्‍तावादी दौर में हमारा लगाव मेहनतकश मजदूरों, किसानों के साथ नहीं रह गया है। हम नव साम्राजयवाद के खिलाफ चाहें जितनी भी जनांदोलन की बात कर लें, मेहनतकश मजदूरों व किसानों से लगाव के बिना कोई आंदोलन नहीं हो सकता है।
उक्‍त विचार साहित्‍यकार प्रदीप सक्‍सेना ने रखे। वे जोकहरा स्थित श्री रामानंद सरस्‍वती पुस्‍तकालय में नव साम्राज्‍यवाद और प्रगतिशील आंदोलन की भूमिका विषय पर आयोजित विचार गोष्‍ठी में बीज वक्‍तव्‍य देते हुए बोल रहे थे। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय की प्रमुख उपस्थिति में कार्यक्रम की अध्‍यक्षता प्रलेस के महासचिव राजेन्‍द्र राजन ने की।
अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में साहित्‍यकार राजेन्‍द्र राजन ने कहा कि डॉ. रामविलास शर्मा 1953 तक प्रगतिशील लेखक संघ के राष्‍ट्रीय महासचिव थे। साहित्‍य में प्रगतिशील लेखन को प्रोत्‍साहित करने एवं उसकी पंरपरा को स्‍थापित करने में डॉ.शर्मा ने विशिष्‍ट योगदान दिया था। तुलसी के लोक चरित्र को इन्‍होंने बखूबी उजागर किया और निराला के साहित्‍य के क्रांतिकारी स्‍वरूप से आमलोगों को जोड़ा। साहित्‍य में प्रगतिशीलता के तहत अनेक तरह के भटकाव यथा : पद, पैसा और स्‍वार्थ से जो लेखन की शुरूआत हो चुकी थी, इसके विरूद्ध इन्‍होंने जनचेतना फैलायी और एक पैसे का पुरस्‍कार आजीवन कबूल नहीं किया। प्रगतिशील लेखक आंदोलन का प्रभाव यह है कि जनता के लिए जनभाषा में लिखने वालों की एक शक्ति तैयार हुई और साहित्‍य की मुख्‍यधारा प्रगतिवादी हुई।
भारत भारद्वाज ने कहा कि जिस तरह से साम्राज्‍यवाद का स्‍वरूप बदला है उसी तरह प्रगतिशील आंदोलन का भी। साम्राज्‍यवाद एक पूँजीवादी अवधारणा है जिसके पीछे सत्‍ता का वर्चस्‍व और अधिकार का विस्‍तार है। यह तो मुझे नहीं मालूम कि आधुनिक विश्‍व में पहला साम्राज्‍यवादी उपनिवेश कौन था, लेकिन मुझे मालूम है कि दुनिया का पहला उपनिवेश जिसे ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति मिली वह अमेरिका है। आज अमेरिका नव उपनिवेश स्‍थापित करना चाहता है। हमें यह जान लेना चाहिए कि दुनिया में समय-समय पर बदलाव आता रहा है। बदलने का सपना कार्ल मार्क्‍स ने 1848 में कम्‍युनिस्‍ट मेनिफेस्‍टो के द्वारा दिखाया। मार्क्‍स ने कहा कि दुनिया के मजदूरों एक हों, खोने के लिए तुम्‍हारे पास जंजीरें हैं और पाने के लिए पूरी दुनिया। मार्क्‍स समाज में समानता लाना चाहते थे और शोषित वर्ग को मुक्ति दिलाना चाहते थे। प्रगतिशील आंदोलन की शुरूआत 1936 ई. में हुई। जैसे-जैसे कम्‍युनिस्‍ट पार्टिंयां टूटती गईं उसी तरह से प्रगतिशील आंदोलन भी शिथिल पड़ता गया। प्रगतिशील आंदोलन ने लगातार नव साम्राज्‍यवाद व पूंजीवाद का विरोध किया। अमेरिका, चीन, जापान ने पूरी दुनिया के बाजार पर कब्‍जा कर रखा है। अमेरिका आई.एम.एफ. और वर्ल्‍ड बैंक के माध्‍यम से पूरी दुनिया के बाजार पर कब्‍जा कर रखा है।
अली अहमद फातमी बोले, नव साम्राज्‍यवादी ताकतें मनुष्‍य की नित्‍य रचना प्रक्रि‍या, सोचने-समझने की ताकत को क्षीण करने पर तुला है। प्रगतिशील कवियों, लेखकों की जिम्‍मेदारी बनती है कि वे इन ताकतों के खिलाफ अपनी आवाजें बुलंद करें। प्रगतिशील लेखक संघ,उ.प्र. के महासचिव डॉ.संजय श्रीवास्‍तव ने संचालन किया तथा महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य दिया। इस अवसर पर संजीव, रघुवंशमणि, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, कांति शर्मा, नरेन्‍द्र सिंह, अशरफ अली बेग, ख्‍वाजा जावेद अख्‍तर, जमीर अहसन, सुरेश शर्मा, कमलेश सिंह, प्रकाश त्रिपाठी, अभिषेक दुबे, विनोद कुमार शुक्‍ल, हरमंदिर पांडेय, अमित विश्‍वास, विनय भूषण, अल कबीर, हीना देसाई सहित बड़ी संख्‍या में साहित्‍यकार, जोकहरा व आजमगढ़ के साहित्‍य के सुधी जन उपस्थित  थे।
यादगार बनी काव्‍य संध्‍या- जोकहरा ‍स्थित श्री रामानंद सरस्‍वती पुस्‍तकालय में गंगा-जमुनी तहजीब मंच द्वारा आयोजित काव्‍य संध्‍या यादगार बनी। इलाहाबाद से आए वरिष्‍ठ शायर जमीर हसन की अध्‍यक्षता में देशभर से आए हिंदी-उर्दू के कवियों ने कविता, मुक्‍त छंद, गीत, गजल, नज्‍़म आदि से उपस्थितों को खूब रिझाया। कवियों के फ़न में जहॉं शोषण की चित्‍कारें थीं तो वहीं महिला अधिकारों सहित प्रेम व प्रेरणा गीत के बोल भी। कवियों ने गजल व गीत की परंपरा में गाकर खूब तालियां बटोरी। काव्‍य संध्‍या में शामिल होने वालों में भारत भारद्वाज, राजेन्‍द्र राजन, मूलचंद गौतम, रघुवंशमणि, राघवेन्‍द्र प्रताप सिंह, गिरीश चंद्र मासूम, असलम इलाहाबादी, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, दानिश जमाल, अल कबीर, जय कृष्‍ण राय तुषार, बालेदीन यादव, असरफ बेग, शंभु शरण श्रीवास्‍तव, जय प्रकाश धूमकेतु, वैजनाथ यादव, सोनी पांडेय आदि शामिल हैं।
    
पुरस्‍कार  वितरण समरोह संपन्‍न - विगत 14 वर्षों से लगातार श्री रामानंद सरस्‍वती पुस्‍तकालय, जोकहरा द्वारा आयोजित सामान्‍य ज्ञान प्रतियोगिता में अव्‍वल आने वाले विद्यार्थियों को महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा पुरस्‍कृत किया गया। कुल 705 बच्‍चे इस प्रतियोगिता में शामिल हुए थे। प्रथम श्रेणी में रमेश कुमार सिंह ने 72 अंक प्राप्‍त कर प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया। विशाल सिंह और सौरभ कुमार ने 68 अंक लेकर संयुक्‍त रूप से द्वितीय स्‍थान तथा मनीष राय, अरूण यादव, रमेश यादव, नवनीत ने 66 अंक लेकर तृतीय स्‍थान प्राप्‍त किया। इसमें प्रथम पुरस्‍कार के रूप में मोबाइल, 06 माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त, द्वितीय पुरस्‍कार के रूप में 06 माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त तथा तृतीय स्‍थान प्राप्‍त करने वाले प्रतिभागी को तीन माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त दिया गया।
द्वितीय श्रेणी में संदीप विश्‍वकर्मा ने 78 अंक तथा तृतीय श्रेणी में शिवम सिंह 86 अंक लेकर प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया। इन्‍हें पुरस्‍कार के रूप में क्रमश: यूनिक सामान्‍य अध्‍ययन और इयर बुक 2012 तथा तीन माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त देने की घोषणा की गई। कार्यक्रम में पुस्‍तकालय के सचिव शेषनाथ राय, निदेशिका हीना देसाई सहित बड़ी संख्‍या में हिंदी के सुधी जन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जय प्रकाश धूमकेतु ने किया।

मंगलवार, 27 नवंबर 2012


रामविलास शर्मा एकाग्र पर हुआ विमर्श

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा बीसवीं सदी का अर्थ : जन्‍मशती का संदर्भ श्रृंखला के तहत प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. के सहयोग से हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा एकाग्र पर आयोजित दो दिवसीय समारोह के दूसरे दिन सत्‍य प्रकाश मिश्र सभागार में मार्क्‍सवादी आलोचना : अंतर्विरोध और विकास’ विषय पर आयोजित तीसरे सत्र की अध्‍यक्षता प्रदीप सक्‍सेना ने की। साहित्‍यकार कुमार पंकज ने बीज वक्‍तव्‍य दिया। वक्‍ता के रूप में भारत भारद्वाज, मूलचंद गौतम, बजरंग बिहारी तिवारी एवं रघुवंश मणि मंचस्‍थ थे। समारोह में विद्वत वक्‍ताओं ने रामविलास शर्मा की भाषा और समाज’, ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’, हिंदी जाति का साहित्य’, ‘भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद, ‘भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद’, भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेशसहित कई रचनाओं पर सलीके से परत-दर-परत पड़ताल कर गंभीर विमर्श किया।
अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में प्रदीप सक्‍सेना ने कहा कि आज भारत में जो सबसे बड़ी समस्‍याएं हैं और साहित्‍य में जो बड़ी अस्मिताएं हैं-नारीवाद, दलितवाद, आदिवासी- सभी शासकवर्ग के सामंतवाद के साथ गठजोड़ हैं। स्‍त्री विमर्श करते समय हमें यह सोचने की जरूरत है कि झांसी की रानी की बहादुरी की चर्चा होती है पर उदा देवी की बहादुरी की चर्चा क्‍यों नहीं होती है। डॉ. रामविलास शर्मा ने इतना परिमाण में लिखा है और उनमें नई स्‍थापनाओं से हिंदी जनता का ध्‍यान आकर्षित किया है। यह नव्‍यता परंपरागत मार्क्‍सवादी आस्‍थाओं में विच्‍छेद से आई जहां उन्‍होंने भारत के संदर्भ में मार्क्‍सवाद की पुनर्व्‍याख्‍या की। उन्‍होंने सवाल उठाया कि रामविलास जी 1913 में स्‍टालिन के एक लेख को पढ़कर जातीयता पर बहस करते हैं पर आज के लेखकों में ऐसा क्‍यों नहीं।
बतौर वक्‍ता डॉ.बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा कि डॉ. रामविलास शर्मा जातीय चेतना को केवल भाषागत, प्रदेशगत चेतनानहीं मानते। वे इसमें साम्राज्य विरोध के साथ सामंती रूढि़यों के विरोध और समाज को पुनर्गठित करने की अवधारणाओं को शामिल करते हैं। उनका मानना है कि वर्ण और जाति व्‍यवस्‍था राष्‍ट्र निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है। उन्‍होंने ब्राह्मण संस्‍कृति पर टिप्‍पणी करते हुए लिखा है कि- ब्राह्मण संस्‍कृति में मौलिकता का अभाव व आम जनता से कटाव है, इसलिए ब्राह्मण संस्‍कृति का विनाश जरूरी है। वे स्‍वीकारते हैं कि ब्राह्मण संस्‍कृति संस्‍कृत के बिना नष्‍ट नहीं हो सकती है। डॉ.तिवारी ने सवर्णों द्वारा दलितों पर किए जा रहे अत्‍याचारों का खुलासा करते हुए बताया कि गोहाना में 60 बाल्‍मीकि के घर जलाए गए। 2007 में सालवन गांव में 300 दलितों के घर, करनाल में 160 घर जलाए गए। उड़ीसा में अप्रैल महीने में दलितों का पूरा गांव जला दिया गया। अभी हाल ही में तमिलनाडु में 350 दलितों के घर को जलाया। हमारी सत्‍ता इन दलितों को सुरक्षा नहीं दे पा रही है इसीलिए दलिस्‍तान की मांग की जाने लगी है।
आलोचक रघुवंश मणि बोले, रामविलास शर्मा की आलोचना को ठीक से समझना है तो उनके आलोचना सिद्धांत के व्‍यापक परिप्रेक्ष्‍य में जाना पड़ेगा। साहित्‍यकार भारत भारद्वाज ने कहा कि मार्क्‍सवादी आलोचना की शुरूआत प्रगतिशील लेखक संघ के गठन के बाद हुई।
कार्यक्रम के शुरूआत में कुलपति विभूति नारायण राय व मंचस्‍थ अतिथियों ने नन्‍दल हितैषी की ताजा कविता संग्रह छेनियों का दंश का लोकार्पण किया। इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी एवं जन्मशती समारोह के संयोजक प्रो. संतोष भदौरिया ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य दिया। विश्‍वविद्यालय के दूरस्‍थ शिक्षा के क्षेत्रीय निदेशक डॉ.जय प्रकाश धूमकेतु ने संचालन किया तथा नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक ने आभार व्‍यक्‍त किया। स्‍वागत पुष्‍पगुच्‍छ प्रदान कर किया गया।
हिंदी जाति की अवधारणा : साहित्‍य और इतिहास’ पर आधारित चौथे सत्र की अध्‍यक्षता इतिहासबोध के संपादक लाल बहादुर वर्मा ने की। साहित्‍यकार चौथीराम यादव ने बीज वक्‍तव्‍य में कहा कि हिंदी की जातीयता बोध पैदा करने में रामविलास शर्मा का बड़ा योगदान है। हिंदी प्रदेशों में आज जिस तरह का रूढि़वाद, अंधविश्वास, जाति-बिरादरी, सम्प्रदायवाद है, क्या वह स्वागत योग्य है। हिंदी जाति का अपना सांस्कृतिक इतिहास है। डॉ.शर्मा इस सांस्कृतिक इतिहास को, समृद्ध, गौरवशाली परंपरा को सामने रखकर हमें प्रेरित करते हैं। वक्‍ता के रूप में राजेन्‍द्र राजन, राजकुमार एवं कृष्‍ण मोहन ने रामविलास शर्मा की हिंदी जाति की अवधारणा पर विशद चर्चा की। निरंजन सहाय ने इस सत्र का संचालन किया तथा प्रो.संतोष भदौरिया ने आभार व्‍यक्‍त किया। विद्वत वक्‍ताओं के विमर्श से समारोह का समापन हुआ।
इस अवसर पर प्रो. सुरेश शर्मा, प्रो.ए.ए.फातमी, नरेन्‍द्र सिंह, अकील रिजवी, अजित पुष्‍कल, असरार गांधी, पीयूष पातंजलि, प्रभाकर सिंह, निरंजन सहाय, प्रकाश त्रिपाठी, मुहम्‍मद नईम, जियाऊल हक, सुधांशु मालवीय, नीलम शंकर, अनुपम आनन्‍द, श्रीप्रकाश मिश्र, अशोक सिद्धार्थ, कांतिलाल शर्मा, रविनंदन सिंह, अमित विश्‍वास, विनय भूषण आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। नामचीन और अदब की दुनिया से जुड़े लोगों के अलावा सभागार में इलाहाबाद के साहित्‍य प्रेमियों और बड़ी संख्‍या में विद्यार्थियों की मौजूदगी रामविलास जी की अहमियत पर मुहर लगा रही थी।

सोमवार, 26 नवंबर 2012


विश्‍वकोशीय लेखक की परंपरा में हैं डॉ.रामविलास शर्मा- नामवर सिंह

रामविलास शर्मा एकाग्र पर आयोजित समारोह का हुआ उदघाटन, देशभर से जुटे साहित्‍यकार

शहर इलाहाबाद व यहां की अदबी रवायत और गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए आज का दिन यादगार क्षण बन गया क्‍योंकि महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा बीसवीं सदी का अर्थ : जन्‍मशती का संदर्भ श्रृंखला के तहत प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. के सहयोग से हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा एकाग्र पर आयोजित दो दिवसीय समारोह का उदघाटन आज साधना सदन में हुआ। समारोह में विद्वत वक्‍ताओं ने रामविलास शर्मा की  भाषा और समाज’, ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’, हिंदी जाति का साहित्य’, ‘भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद, ‘भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद’, भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेशसहित कई रचनाओं की परत-दर-परत पड़ताल कर गंभीर विमर्श किया।
हिंदी के शीर्ष आलोचक प्रो.नामवर सिंह ने उदघाटन वक्‍तव्‍य में कहा कि राहुल सांकृत्‍यायन, वासुदेव शरण अग्रवाल और डॉ.रामविलास शर्मा तीनों विश्‍वकोशीय लेखक हैं, जिन्‍होंने इतिहास, साहित्‍य, समाज, संस्‍कृति और राजनीति समेत जहां भी उनकी दृष्टि गईं और उनको चुनौती मिली, उस पर उन्‍होंने खूब लिखा। रामविलास शर्मा में मार्क्‍सवाद की गहरी आस्‍था थी। उन्‍होंने भारत के संदर्भ में मार्क्‍सवाद की नई व्‍याख्‍या कर अपने कर्म और रचनात्‍मक उड़ान के लिए जगह बनायी। आर्यों के आगमन के संदर्भ में रामविलास जी ने जो लिखा, उस पर कुछ इतिहासकार असहमति जताते हैं। उनके लेखन का परिदृश्य अत्यंत विराट और विस्तृत है। रामविलास जी के लेखन को पहचानना व उससे संवाद करना किसी भी महत्वपूर्ण लेखक की आज पहली जिम्मेदारी बनती है। उन्‍होंने अपनी साहित्‍य सर्जना में भाषा-परंपरा, भाषा-विज्ञान, उपनिवेशवाद, पूँजीवाद, राष्ट्रीय आंदोलन, आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता जैसे तमाम वैचारिक बहसों को उठाया है। वह भारत की वर्तमान संस्कृति और हिंदी प्रदेशों की उन जीवंत विरासतों की ओर बार-बार हमारा ध्यान खींचते हैं।
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्‍ट्रीय महासचिव अली जावेद ने कहा कि रामविलास शर्मा के साथ ही एहतेशाम हुसैन, मंटो, अली सरदार जाफरी की भी जन्‍मशती है और हमें बारी-बारी से देश के विभिन्‍न शहरों में, हो सके तो विदेशों में भी जन्‍मशती समारोहों का आयोजन कर इन विभूतियों के योगदान को याद किया जाना चाहिए।
मुख्‍य अतिथि महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय ने डॉ.शर्मा के विपुल लेखन की विशद चर्चा की। उन्‍होंने कहा कि रामविलास जी राजकीय, गैर-राजकीय व अन्‍य समारोहों से स्‍वयं को अलग रखते हुए एक ऋषि की तरह अनुशासनबद्ध होकर लिखते रहे। शुरूआत कविता लेखन के रूप में हुई और बाद में वे गद्य लेखन की ओर प्रवृत्‍त हुए। कविता कैसे पढ़ी जाए? इस संदर्भ में कुलपति राय ने बहुवचन पत्रिका में आने वाले विजेन्‍द्र के ताजा लेख पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ.शर्मा ने कविता पढ़ने की तमीज दी। विजेन्‍द्र ने लिखा है कि रामविलास शर्मा कविता को मनोरंजन या समय बिताने के लिए नहीं अपितु वे कविता के पास समाज चेता के रूप में जाते हैं। उन्‍होंने कहा कि एक ही कवि के कविता के कई पाठ हो सकते हैं, बशर्ते कि कवि का मूल स्‍वर सुरक्षित रहे। इस संदर्भ में उन्‍होंने कबीर का जिक्र करते हुए कहा कि हर स्‍थान का अपना-अपना कबीर होता है।
अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार प्रो.चौथीराम यादव ने कहा कि डॉ.रामविलास शर्मा की न होने की स्थिति में आलोचक नामवर सिंह का तेवर कमजोर हुआ है। दोनों के बीच चलने वाले वाद-विवाद-संवाद से दोनों ऊर्जावान होते थे। उन्‍होंने कहा कि डॉ.रामविलास शर्मा साम्राज्‍यवाद विरोध के स्‍थापित आलोचक थे, परंतु साथ ही साथ उन्‍होंने सवाल खड़ा किया कि उनके लेखन में सामंतवाद का विरोध कहां है? हाशिए का समाज कहां है? यह एक बड़ा सवाल है। उन्‍होंने कहा कि डॉ.शर्मा बड़े राष्‍ट्रभक्‍त मार्क्‍सवादी थे।
इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी एवं जन्मशती समारोह के संयोजक प्रो. संतोष भदौरिया ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य देते हुए कहा कि वर्धा विश्‍वविद्यालय द्वारा यह आठवां आयोजन है। जन्‍मशती समारोह के माध्‍यम से हम साहित्‍य विभूतियों को याद कर रहे हैं। हमारा यह प्रयास हो कि समारोह मात्र औपचारिकता नहीं हो। आहा और ओहो की संस्‍कृति से दूर साहित्‍य विभूतियों पर चर्चा करें और उनके अंतर्विरोधों पर गंभीर विमर्श करें। वर्धा विश्‍वविद्यालय के सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो.सुरेश शर्मा ने संचालन किया तथा प्रलेस, उ.प्र. के महासचिव संजय श्रीवास्‍तव ने आभार व्‍यक्‍त किया। इस अवसर पर प्रो.ए.ए. फातमी, नरेन्‍द्र सिंह, जय प्रकाश धूमकेतु, अकील रिजवी, अजित पुष्‍कल, राजेन्‍द्र राजन, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, असरार गांधी, मूलचंद गौतम, आनन्‍द शुक्‍ल, पीयूष पातंजलि, प्रभाकर सिंह, निरंजन सहाय, प्रकाश त्रिपाठी, एम.फिरोज, मुहम्‍मद नईम, खान अहमद फारुख, अमित विश्‍वास, विनय भूषण आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। नामचीन और अदब की दुनिया से जुड़े लोगों के अलावा सभागार में इलाहाबाद के साहित्‍य प्रेमियों और बड़ी संख्‍या में विद्यार्थियों की मौजूदगी रामविलास जी की अहमियत पर मुहर लगा रही थी।
 साहित्‍यकार दूधनाथ सिंह की अध्‍यक्षता में भाषा और समाज विषय पर आधारित द्वितीय अकादमिक सत्र में अरुण होता, संजय कुमार, रामचन्‍द्र व वैभव सिंह ने विमर्श किया। इस अवसर पर दूधनाथ सिंह बोले, हिंदी-उर्दू की साझा संस्‍कृति एक नया रचनात्‍मक माहौल बना सकता है। इससे दोनों ही भाषाओं के रचनाकारों को फायदा होगा। डॉ.रामविलास शर्मा की हिंदी जनपद संबंधी अवधारणा धीरेन्‍द्र वर्मा की मध्‍य देश संबंधी अवधारणा से प्रेरित है। डॉ. शर्मा का भाषा चिंतन किशोरी दास वाजपेयी के भाषा चिंतन से गहरे प्रभावित हैं। संचालन सूरज बहादुर थापा ने किया।

रामविलास शर्मा एकाग्र पर आज होगा विमर्श - म‍हात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा द्वारा बीसवीं सदी का अर्थ : जन्‍मशती का संदर्भ श्रृंखला के तहत रामविलास शर्मा एकाग्र पर आयोजित दो दिवसीय समारोह के दूसरे दिन 24/28, सरोजनी नायडू मार्ग, सिविल लाइंस स्थित क्षेत्रीय केंद्र के सत्‍य प्रकाश मिश्र सभागार में 27 नवम्‍बर को सुबह 10-30 बजे मार्क्‍सवादी आलोचना : अंतर्विरोध और विकास’ विषय पर आधारित तीसरे सत्र की अध्‍यक्षता प्रदीप सक्‍सेना करेंगे। बीज वक्‍तव्‍य कुमार पंकज देंगे। वक्‍ता के रूप में भारत भारद्वाज, रवि श्रीवास्‍तव, बजरंग बिहारी तिवारी एवं रघुवंश मणि  इस विषय पर विमर्श करेंगे। दोपहर दो बजे चौथे सत्र का विषय हिंदी जाति की अवधारणा : साहित्‍य और इतिहास’ होगा। इस सत्र में चौथीराम यादव बीज वक्‍तव्‍य देंगे। वक्‍ता के रूप में ज्ञान प्रकाश शर्मा, राजकुमार, हितेन्‍द्र पटेल एवं कृष्‍ण मोहन वक्‍तव्‍य देंगे।