बुधवार, 4 जुलाई 2012


आधुनिक गद्य साहित्य  के जनक थे फ्रेंज काफ्का- विजय मोहन सिंह

फ्रेंज़ काफ्का आधुनिक गद्य साहित्य  के जनक थे। काफ्का ने  दि ट्रायलएवं दि मेटामोर्फोसिसजैसी कृतियों के माध्यम से आधुनिक गद्य साहित्य में एक नई चेतना लायी। उक्त उदबोधन महात्मा  गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अतिथि लेखक, जाने-माने आलोचक विजय मोहन सिंह ने दिये। वे फ्रेंज़ काफ्का के जन्मदिवस के अवसर पर 03 जुलाई को एक साहित्यिक गोष्ठी के अवसर पर काफ्का के साहित्यिक अवदानविषय पर बोल रहे थे। इस अवसर पर प्रमुख रूप से प्रसिद्ध कथाकार संजीव, कुलसचिव के. जी. खामरे आदि मंचस्थ थे। डॉ. विजय मोहन सिंह ने काफ्का के साहित्य पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि काफ्का को मॉडर्न फिक्शन का जनक माना जाता है, यद्धपि काफ्का स्वयं को अत्यंत लघु और शुद्र मानते रहे, उन्हें आजन्म शुद्रता की तीव्र अनुभूति के ताप से गुजरना पड़ा। डॉ. सिंह ने काफ्का की तुलना और समानता अल्बेयर कामू से करते हुए कहा इन दोनों में आउटसाइडनेस  का बोध तीव्रता के साथ उपस्थित था। कामू की क्लासिक रचना आउटसाइडरएक उपन्यास है । डॉ. सिंह ने कहा कि सन 1923 में जिस समय नाजीवाद का लगभग कोई नामोनिशान नहीं था उस समय काफ्का की रचना दि कैसलका रूपक नाजी दौर की नरसंहारों, गेस्टापो, आतंक का पूर्वाभ्यास प्रस्तुत करती हुई कृति के रूप में आती है । वहीं दूसरी तरफ दि ट्रायलव्यवस्था के द्वारा एक निर्दोष को नाटकीय ट्रायल के बाद फाँसी देने के पीछे के सत्य का पर्दाफास करती  रचना है। काफ्का को दूनिया और स्वयं की व्यर्थता का गहरा बोध था। काफ्का अपनी समृद्धि से नफरत करते थे। वस्तुत: यह नफरत, पूंजीवाद से नफरत का प्रतीक थी । काफ्का को इसके बावजूद जीवन भर दोधारी तलवार पर चलना पड़ा, क्योंकि काफ्का को पूँजीवाद के विरोध के कारण अमेरिका अपना विरोधी मानता रहा। दूसरी तरफ मार्क्सवादियों ने उनका विरोध सतत बनाये रखा। जबकि रचना के स्तर पर काफ्का का प्रभाव अत्यंत ही गहरा थाजो चेतना के स्तर पर अपना असर दिखाती थी। अपनी रचनाओं के बल पर काफ्का आज भी हमारे भीतर मौजूद हैं और रहेंगे। यह उनकी सीमाविहीन प्रतिभा हीं थी कि अस्तित्ववाद जैसे वैचारिक एवं बौद्धिक आंदोलन के जन्म के मूल में फ्रेंज़ काफ्का का हाथ माना जाता है। डॉ. विजय मोहन सिंह ने काफ्का के साहित्य पर अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि काफ्का के साहित्य को पुन:अविष्कृत किए जाने की जरूरत है। काफ्का कैफेटेरीया की  इस गतिविधि को डॉ. विजय मोहन सिंह ने एक सुखद अनुभव बताया, साथ हीं साथ यह जोड़ा की शायद हीं कहीं आज काफ्का पर कोई लिखता, पढ़ता, बोलता हो ऐसे में यह साहित्यिक गोष्ठी एक रोमांचक एवं यादगार अनुभव है। प्रारंभ में सूरजप्रकाश (मुंबई) द्वारा प्रेषित पत्र का वाचन किया गया। अमरेंद्र शर्मा ने काफ्का के साहित्य पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला। कथाकार संजीव ने काफ्का के संदर्भ में अपना मंतव्य प्रस्तुत किया।
गोष्ठी का संचालन राकेश मिश्र ने किया एवं आभार डॉ. जयप्रकाश धूमकेतूने माना। इस अवसर पर श्रोताओं में राजकिशोर, डॉ. शरद जायसवाल, डॉ.रामानुज अस्थाना, डॉ. उमेश सिंह, डॉ. ललित किशोर शुक्ल, अमित राय, अशोक मिश्र, डॉ. अनिल पांडे, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, बी. एस. मिरगे, शिवप्रिय, अविचल गौतम आदि प्रमुखता से उपस्थित थे ।

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